Diwali Ben Bheel biography in Hindi | दिवाली बेन भील की जीवनी

Diwali Ben Bheel

 

दिवाली बेन भील (Diwali Ben Bheel) का जीवन परिचय 

दिवाली बेन भील (Diwali Ben Bheel) गुजरात की एक प्रतिष्ठित लोक गायिका है जिन्होंने कई तरह के लोकगीत और गरबा के गीत गाएं हैं। यहां तक कि उन्होंने कई गुजराती फिल्मों में भी गायन किया है। गुजरात अलावा देश के हर एक प्रदेश में आज भी उनके लोक गीतों को पसंद करने वाले लोगों की संख्या लाखों में है।

साल 1990 में केंद्र सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया था। आज के इस पोस्ट में हम लोक गायिका दिवाली बेन भील के जीवन के बारे में जानेंगे और साथ ही यह भी जानेंगे कि कैसे उन्होंने जीवन में इतनी सारी सफलता पाई।

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दिवाली बेन भील (Diwali Ben Bheel) का जन्म

दिवाली बेन भील का जन्म गुजरात के अमरेली जिले के दलखाणिया गांव में 2 जून 1943 को हुआ था।उनके पिता का नाम पूंजा भाई भील था जो रेलवे में नौकरी किया करते थे।

दिवाली बेन भील (Diwali Ben Bheel) का विवाह

साल 1952 को इनका पूरा परिवार जूनागढ़ आ गया। उसके बाद दिवाली बेन भील का विवाह राजकोट में कर दिया गया। दिवाली बेन भील की शादी के केवल दो ही दिन हुए कि उनके पिता और उनके ससुर में विवाद हो जाने के कारण उनकी शादी टूट गई जिसके बाद उन्हें अपने मायके में आकर रहना पड़ा।

उसके बाद उन्होंने कभी दोबारा शादी भी नहीं की। मायके में अपने भाइयों पर बोझ नहीं होना चाहती थी इसीलिए उन्हें आर्थिक मदद करने के लिए सोची। लेकिन दिवाली बेन कुछ पढ़ी लिखी नहीं थी जिसके कारण इन्हें कहीं भी नौकरी नहीं मिल रही थी।

दिवाली बेन भील (Diwali Ben Bheel) का कॅरिअर

इसलिए इन्होंने एक दवाई की दुकान में साफ सफाई का काम करना शुरू कर दिया। बाद में उन्होंने बाल मंदिर में भी काम किया यहां तक कि नर्सों के लिए खाना बनाने तक का भी काम किया।

दिवाली बेन भील बचपन से ही भजन, कीर्तन और लोकगीत गाने में काफी रुचि रखती थी। उनकी आवाज तिखी थी किंतु बहुत सुरीली थी। नवरात्रि में जब वे अपने जूनागढ़ के बंजारी चौक में गाती थी तो वहां के लोग झूम उठते थे।

दिवाली बेन भील (Diwali Ben Bheel) का गायन

उस वक्त जूनागढ़ में इनके गीत का काफी नाम था। इनके जिंदगी में करियर की शुरुआत तब हुई जब आकाशवाणी के अधिकारी रिकॉर्डिंग करने के लिए एक बार नवरात्रि में जूनागढ़ पहुंचे थे। उन्होंने दिवाली बेन भील के गानों को सुना और वहां उपस्थित हेमू गढवी अधिकारियों को दिवाली बेन भील  के गीतों को रिकॉर्डिंग करने के लिए कहा जिसके बाद उन अधिकारियों ने दिवालीबेन के लोकगीतों को रिकॉर्डिंग किया ।

उस वक्त दिवाली बेन भील की उम्र केवल 15 वर्ष थी। और उन्हें सबसे पहला स्टेज प्रोग्राम का ऑफर भी मिल गया जिसके लिए उन्हें ₹5000 दिए गए जो उनके लिए बहुत बड़ी रकम थी वह बहुत खुश हुई। वहीं से सफलता ने उनके कदम छूने शुरू कर दिए।

दिवाली बेन भील (Diwali Ben Bheel) के प्रोग्राम और पहचान

वहां से जो एक बार आगे बढ़ती रही फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। मुंबई, दिल्ली जैसे केवल भारत के शहरों में ही नहीं बल्कि लंदन, फ्रांस, अमेरिका, करांची (पाकिस्तान) जैसे कई देशों में अनेक कार्यक्रम किए।ज्यादातर स्टेज प्रोग्राम इन्होंने संगीतकार प्राणलाल व्यास के साथ किए

दिवाली बेन भील (Diwali Ben Bheel) परंपरा और संस्कृति को नहीं भूला

अनेकों देश में गाते समय इन्होंने अपने देश की परंपरा और संस्कृति को नहीं भूला। यह जहां भी गाती थी उनके सर से पल्लू कभी नहीं हटता था और यही उनकी सबसे बड़ी विशेषता थी।यह हमेशा ही अपने पारंपरिक वेशभूषा में ही रहती थी फिर चाहे वह भारत में गा रही हो या फिर विदेश में।

दिवाली बेन भील (Diwali Ben Bheel) पद्मश्री अवार्ड

साल 1990 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री अवार्ड मिलने के बाद भी उन्हें संगीत में सर्वश्रेष्ठ योगदान देने के कारण अनेकों सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायिका जैसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया। आज भी गुजरात में नवरात्रि के समय इनका गरबा गीत बजता ही है।

दिवाली बेन भील (Diwali Ben Bheel) का देहान्त

73 वर्ष की आयु में 19 मई, 2016 को गुजरात की प्रसिद्ध लोकगायिका व पार्श्व गायिका दिवाली बेन भील का देहान्त हो गया।

दिवाली बेन भील (Diwali Ben Bheel) शिक्षा और उनकी शिक्षा 

दिवाली बेन भील स्वयं-सिखीया गायिका थीं। मुझे पास संगीत का कोई डिग्री या डिप्लोमा नहीं था और ना ही कोई संगीत की औपचारिक शिक्षा प्राप्त की थी

दिवाली बेन भील (Diwali Ben Bheel) को अवार्ड सम्मान और गौरव

गुजराती समाज द्वारा दिवाली बेन भील को लंदन यात्रा के दौरान लंदन में उन्हें सम्मानित किया था। गुजरात गौरव पुरस्कार से गुजरात सरकार ने सम्मानित किया था। उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म श्री सम्मान दिया गया था। और भारत में दिवाली बेन भील “गुजरात नी कोयल” के रूप में विख्यात थी।

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