एकलव्य (Ekalavya) की कहानी | महान धनुर्धर शूरवीर एकलव्य की जीवन की कथा | भील बालक वीर एकलव्य

mahabharat ka shooraveer yoddha dhanurdhar ekalavy bheel
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1 महान धनुर्धर शूरवीर एकलव्य (Ekalavya) की जीवन की कथा
1.2 एकलव्य (Ekalavya) कौन सी जाति का है?

महान धनुर्धर शूरवीर एकलव्य (Ekalavya) की जीवन की कथा

एकलव्य (Ekalavya) के माता पिता का क्या नाम है?

जब भी गुरु और एक आदर्श शिष्य की बात आती है तो हमेशा ही एकलव्य (Ekalavya) को याद किया जाता है। एकलव्य महाभारत के महान चरित्रों में से एक है। महाभारत के इस पात्र का जन्म एक भील जाति के राजा हिरण्यधनु के घर हुआ था। एकलव्य की माँ का नाम रानी सुलेखा था।

एकलव्य (Ekalavya) कौन सी जाति का है?

एकलव्य (ekalavya) की कहानी | महान धनुर्धर शूरवीर एकलव्य की जीवन की कथा | भील बालक वीर एकलव्य
ekalavya bheel dhanush vidhya ka abhyas karte hua.

एकलव्य के पिता हिरण्यधनु श्रृंगबेर राज्य में भील कबीले के राजा थे। एकलव्य का मूल नाम अभिद्युम्न था। भील एक धनुर्धारी और शूरवीर जाति होती है। इसीलिए वह बचपन से ही धुनष-बाण चलाने में काफी माहिर भी था।

महाभारत में वर्णित कथा के अनुसार एकलव्य धनुर्विद्या में उच्च अभ्यास पाना चाहता था इसीलिए एक दिन द्रोणाचार्य के पास जाता है जो कौरव और पांडवों के भी गुरु थे।

एकलव्य उनके पास बहुत निष्ठा और विश्वास लेकर जाता हैं लेकिन छोटे कुल के होने के कारण द्रोणाचार्य ने एकलव्य को अपना शिष्य स्वीकार करने से मना कर देते हैं।

भील बालक वीर एकलव्य (ekalavya)

उसके बाद एकलव्य भी ठान लेता है कि वह धनुर्विद्या द्रोणाचार्य से ही सीखेंगे इसलिए वह एक वन में आश्रम (कुटिया) बनाकर रहने लगते हैं और वहीं पर पेड़ के नीचे गुरु द्रोणाचार्य की प्रतिमा को बिठाकर उन्हीं के सामने प्रत्येक दिन धनुर्विद्या का अभ्यास करता हैं।

इसी दौरान एक दिन द्रोणाचार्य अपने शिष्यो और एक कुत्ते के साथ उसी वन में आखेट के लिए जाते हैं। बीच रास्ते में ही कुत्ता वन में भटक जाता है और भटकते भटकते जाकर वह एकलव्य के आश्रम तक पहुंच जाता है।

उस समय एकलव्य एकाग्रचित्त होकर अपने धनुर्विद्या का अभ्यास कर रहा था। लेकिन कुत्ते के भोकने की आवाज से एकलव्य के अभ्यास में बाधा आ रही थी।

तब एकलव्य ने अपने कौशल से कुत्ते के मुंह में इस तरह बाण चलाएं कि कुत्ते को जरा सी भी आहत (नुकसान) नहीं पहुंची और उसका मुंह भी बंद हो गया ( ने मुँह तीरों से भर दिया)।

उसके बाद कुत्ता भी असहाय होकर वापस द्रोणाचार्य के पास चला गया। वहां पर द्रोणाचार्य और पांडव कुत्ते के इस हालत को देखकर आश्चर्यचकित रह गए। उन्हें जानने की तिव्र इच्छा जागी कि आखिर किस धनुर्धर ने इतने कुशल तरीके से कुत्ते के मुंह में इस तरह बाण चलाएं हैं।

उस धनुर्धर को खोजते खोजते वे एकलव्य के पास पहुंच गए। एकलव्य को एकनिष्ठा से धनुर्विद्या का अभ्यास करते देख द्रोणाचार्य को उनके गुरु के बारे में जानने की इच्छा हुई।

द्रोणाचार्य ने एकलव्य (ekalavya) से अंगूठा क्यों मांगा?

तब एकलव्य द्रोणाचार्य की प्रतिमा की ओर इशारा करते हुए कहा कि वहीं उसके गुरु हैं। द्रोणाचार्य को उस समय की याद आ जाती है जब उन्होंने एकलव्य को अपना शिष्य स्वीकार करने से मना किया था।

एकलव्य की एक निष्ठा और कुशाग्र धनु विद्या का कौशल देख द्रोणाचार्य को आशंका हुआ कि कहीं वह सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर ना बन जाए। क्योंकि यदि ऐसा हुआ तो द्रोणाचार्य ने अर्जुन को महान धनुर्धर बनाने का जो वचन लिया था वह झूठ साबित हो जाएगा।

इसलिए वे गुरु दक्षिणा की मांग करते हैं। एकलव्य गुरु दक्षिणा में अपनी प्राण देने की बात करते हैं। लेकिन द्रोणाचार्य उससे अंगूठा मांग लेते हैं और एकलव्य ततक्षण बिना कुछ सोचे अपना अंगूठा काटकर द्रोणाचार्य के समक्ष प्रस्तुत कर दे देता हैं।

एकलव्य (ekalavya) की पत्नी का क्या नाम था?

उसके बाद एकलव्य अपने मध्यमा और तर्जनी अंगुली के सहयोग से धनुर्विद्या का अभ्यास करने लगते हैं। फिर द्रोणाचार्य आशीर्वाद देते हैं कि अंगूठा न होने के बाद भी सदियों तक उन्हें एक महान धनुर्धारी के रूप में लोग जानेंगे। जब कोई गुरु और सच्चे शिष्य दक्षिणा की बात कहेगा तो तुम्हारी कथा हर एक मनुष्य के मुख पर होगी‌।

एकलव्य (ekalavya) का पुत्र कौन था?

इसके बाद एकलव्य अपने राज्य श्रृंगबेर आ गया एकलव्य के युवा होने पर उसका विवाह भील कन्या सुणीता से हुआ। सुणीता के गर्भ से एकलव्य को एक पुत्ररत्न प्राप्त हुआ जिसका नाम केतुमान रखा गया । एकलव्य अपने पिता की मृत्यु के बाद श्रृंगबेर का शासक बन गया

अमात्य परिषद (राजसभा) की मंत्रणा से उनहोने अपने राज्य का बहुत अच्छे से संचालन किया साथ ही राज्य की सीमाओं का विस्तार करने के लिए भीलों की एक सशक्त सेना का गठन भी किया।

एकलव्य की मृत्यु के बाद एकलव्य के पुत्र केतुमान ने वहां का राजकाज संभाला और बड़ी कुशलता से राज्य का संचालन किया।

वीर एकलव्य (ekalavya) की मृत्यु कैसे हुई?

बात करें एकलव्य की मृत्यु की तो महाभारत के कथाओँ के अनुसार एकलव्य ने राजा बनने के बाद जरासंध का साथ दिया था मथुरा के खिलाफ आक्रमण में उन्होंने अकेले ही बहादुरी से यादव वंश के हजारों सैनिकों को मार गिराया था।

इस युद्ध में जब भगवान कृष्ण रणभूमि में उतरे तो उन्हें पता चल गया कि चार अंगुलियों से धुनष बाण चलाने वाला एकलव्य ही है। इसी युद्ध में भगवान कृष्ण के हाथों एकलव्य को वीरगति प्राप्त हो गई।

एकलव्य (ekalavya) की कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है?

इस तरह एकलव्य भील एक श्रेष्ठ राजा के साथ-साथ महान और एकनिष्ठ धनुर्धर थे जो अपने गुरु दक्षिणा के लिये आज भी जाना जाता हैं।

FAQ On Ekalavya Bheel

एकलव्य का जन्म महाभारत काल में श्रृंगबेर राज्य के आदिवासी भील राजा हिरण्यधनु भील के घर हुआ था।

एकलव्य के पिता राजा हिरण्यधनु और माँ का नाम रानी सुलेखा था।

एकलव्य (ekalavya) आदिवासी भील जाति का था।

कुत्ते के भोकने की आवाज से एकलव्य की एकाग्रता भंग हो रही थी इसलिए एकलव्य ने कुत्ते का मुँह को तीरॉ (बाणों) से भर दिया।

एकलव्य के गुरु का नाम द्रोणाचार्य था।

द्रोणाचार्य ने एकलव्य से अंगूठा गुरुदक्षिणा में मांग लिया तो तुरंत एकलव्य ने अपना अंगूठा काट कर गुरु द्रोणाचर्य को अर्पण कर दिया।

एकलव्य की पत्नी का नाम सुणीता (Sunita) था।

एकलव्य के पुत्र का नाम केतुमान (Ketuman) था।

एकलव्य अपने पिता की मृत्यु के बाद श्रृंगबेर राज्य का राजा बना।

एकलव्य का मूल नाम अभिद्युम्न था।

मथुरा के विरुद्ध युद्ध करते हुए श्री कृष्ण के हाथों एकलव्य वीरगति को प्राप्त हुए।

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