Maharshi Valmiki Biography in Hindi | उस एक घटना से डाकू रत्नाकर बने महर्षि वाल्मीकि

Ek Ghatana se Daaku Ratnaakar bane Maharshi Valmiki | उस एक घटना से डाकू रत्नाकर बने महर्षि वाल्मीकि
Ek Ghatana se Daaku Ratnaakar bane Maharshi Valmiki | उस एक घटना से डाकू रत्नाकर बने महर्षि वाल्मीकि
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1 महर्षि वाल्मीकि का जीवन परिचय, जयंती, निबंध | Maharshi Valmiki Biography in Hindi
1.2 कौन थे महर्षि वाल्मीकि (Who is Maharshi Valmiki)

महर्षि वाल्मीकि का जीवन परिचय, जयंती, निबंध | Maharshi Valmiki Biography in Hindi

महर्षि वाल्मीकि ( Maharshi Valmiki ) द्वारा रचित रामायण एक ऐसा महान ग्रंथ है जो कि लोगों को उसकी मर्यादा, त्याग, सत्य, प्रेम, मित्रत्व एवम सेवक जैसे धर्मों की सीख देता है। ऐसे पवित्र रामायण के रचयिता वाल्मीकि ( Maharshi Valmiki ) के बारे में हर कोई जानता है।
रामायण में जब माता सीता अपने घर को त्याग करके वन जाती है तो वहां पर वाल्मीकि के आश्रम में शरण लेती हैं और वहीं पर लव कुश का लालन-पालन भी होता है।

वाल्मीकि लव कुश के गुरु थे, जिन्होंने लव कुश को रामायण का पाठ सुनाया था। लेकिन क्या आपको पता है कि रामायण के रचयिता वाल्मीकि का नाम पहले रत्नाकर था और इन्हें आदिकवि भी कहा जाता है।

महर्षि वाल्मीकि परिचय (Maharshi Valmiki Introduction)

इसके अतिरिक्त इनके जीवन से जुड़ी कई बातें हैं जो आपको प्रेरणा देगी। तो चलिए महर्षि वाल्मीकि Maharshi Valmiki के जीवन कथा के बारे में और कुछ जानते हैं।

Ek Ghatana se Daaku Ratnaakar bane Maharshi Valmiki | उस एक घटना से डाकू रत्नाकर बने महर्षि वाल्मीकि
Ek Ghatana se Daaku Ratnaakar bane Maharshi Valmiki | उस एक घटना से डाकू रत्नाकर बने महर्षि वाल्मीकि

कौन थे महर्षि वाल्मीकि (Who is Maharshi Valmiki)

महर्षि वाल्मीकि जी का व्यक्तित्व साधारण नहीं था। ये पहले डाकू थे लेकिन अपने जीवन में हुई एक घटना के बाद उन्होंने अपना पथ बदला और महान कवि बने।
महर्षि वाल्मीकि का जन्म अश्विनी महीने की पूर्णिमा के दिन त्रेता युग में हुआ था। वाल्मीकि के माता का नाम प्रचेता था। इनके पिता का नाम कश्यप था।

कहा जाता है कि बचपन में उन्हें भील जाति के लोगों ने चुरा लिया था उसके बाद उनका लालन-पालन भीलों ने ही किया। वाल्मीकि के पिता का नाम कश्यप होने के कारण ही वाल्मीकि को महर्षि कश्यप का पुत्र कहा जाता है जबकि ऐसा नहीं है वाल्मीकि के पिता जो कश्यप थे वह आदिवासी भील थे। और महर्षि कश्यप ब्रह्माजी के मानस पुत्र मरीचि ऋषि के पुत्र थे। महर्षि वाल्मीकि को वाल्मीकि भील भी कहा जाता है। क्योंकि वे भील जाति के थे।

भील जाति आज के समय में गुजरात, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान जैसे राज्यों में अनुसूचित जनजाति हैं। भील जाति लोग जंगलों में रहते थे, जो जंगलों में उपलब्ध फल फ्रूट से अपना जीवन यापन करते थे। और जंगल से गुजरने वाले लोगों को भी लूट लिया करते थे।

महर्षि वाल्मीकि जीवन से जुड़ी प्रेरणादायक घटना (Inspirational incident related to life of Maharshi Valmiki)

इसीलिए वाल्मीकि भी बड़े होकर डाकू बन गए और वह भी अपने परिजनों की मदद के लिए लोगों को लूटते थे यहां तक कि कई बार उनकी हत्या भी कर देते थे।

महर्षि वाल्मीकि और नारद मुनि Maharishi Valmiki and Narada Muni

उसी दौरान एक बार नारद मुनि जंगल से गुजर रहे थे। उस वक्त वाल्मीकि अपने शिकार को ढूंढ रहे थे तब उनकी नजर नारद मुनि पर पड़ा और नारद मुनि को बंदी बना लिया।

नारद मुनि ने वाल्मीकि से पूछा कि यह तुम क्यों करते हो? इस सवाल के जवाब में वाल्मीकि ने कहा कि मैं अपने परिजनों के लिए करता हूं। तब नारद मुनि ने उनसे दोबारा पूछा कि क्या तुम्हारे इस पाप के फल का भागीदार तुम्हारे परिजन होंगे?
वाल्मीकि को लगा कि उनके परिजन उनका साथ देते हैं तो इनके पाप के फल का भागीदार वह भी जरूर होंगे। इसलिए बिना सोचे समझे वे हां बोल देते हैं।

फिर नारद मुनि कहते हैं कि यही सवाल तुम अपने परिजनों को जाकर पूछो। यदि वह भी हां बोल देते हैं तो मैं बिना कुछ कहे अपना सारा धन और आभूषण तुम्हें दे दूंगा।

नारद मुनि की बात सुनकर वाल्मीकि अपने घर जाते हैं और वहां अपने परिजनों से पूछते हैं कि क्या वे इनके पाप के फल के भागीदार बनेंगे। परिजन तुरंत मना कर देते हैं।

यह सुनकर वाल्मीकि को बहुत बड़ा आघात पहुंचता है। सोचने लगते हैं कि जिनके लिए वे यह पाप कर रहे थे, उस पाप के फल का भागीदारी उनका परिवार नहीं होना चाहता।

वाल्मीकि को अपने पाप का आभास हुआ और वह इस जीवन को त्याग करके एक नया पथ चुनना चाहते थे। लेकिन वे पूरी तरह से अज्ञान थे इसीलिए नारद मुनि से कहते हैं कि अब आप ही मुझे रास्ता दिखाइए कि मैं क्या करूं, जिससे मेरे पापों का प्रायश्चित हो सके?

नारद मुनि उन्हें राम नाम जपने को कहते हैं। वाल्मीकि वन में राम नाम जपने लगते हैं। अज्ञानता के कारण वाल्मीकि राम राम के बजाय मरा मरा जपने लगते है।

जिसके कारण उनका शरीर पूरी तरह निर्बल हो जाता है और चीटियां उनके शरीर पर लग जाती है जो शायद उनके पापों का फल था। उसके बावजूद भी वे अपना पूरा ध्यान राम नाम जपने में लगा देते हैं।

कहा जाता है कि इस दौरान उनके शरीर को दिमक अपना घर बना लेता है लेकिन वाल्मीकि Maharshi Valmiki दीमक के घर को तोड़ बाहर निकल जाते हैं जिसके कारण उन्हें तभी से रत्नाकर के जगह वाल्मीकि कहा जाने लगता है।

महर्षि वाल्मीकि और भगवान ब्रह्मा Maharishi Valmiki and Lord Brahma

वाल्मीकि के कठोर तपस्या को देख भगवान ब्रह्मा उनसे प्रसन्न हो जाते हैं और उन्हें रामायण लिखने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। उसके बाद वाल्मीकि रामायण रचते हैं।

महर्षि वाल्मीकि जयंती (Maharshi Valmiki Jayanti) 

हर साल महर्षि वाल्मीकि Maharshi Valmiki के जन्मदिन अश्विनी महीने की पूर्णिमा को वाल्मीकि जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस प्रकार महर्षि वाल्मीकि गलत राह को त्याग कर सही राह चूनकर महाकवि बनते हैं और महा ग्रंथ रामायण की रचना करते हैं।

FAQ on Maharishi Valmiki

महर्षि वाल्मीकि का जन्म अश्विनी महीने की पूर्णिमा के दिन त्रेता युग में हुआ था।

महर्षि वाल्मीकि जी का व्यक्तित्व साधारण नहीं था। ये पहले डाकू थे लेकिन अपने जीवन में हुई एक घटना के बाद उन्होंने अपना पथ बदला और महान कवि बने

रामायण के रचयिता वाल्मीकि का नाम पहले रत्नाकर था और इन्हें आदिकवि भी कहा जाता है।

वाल्मीकि के माता का नाम प्रचेता था। इनके पिता का नाम कश्यप था।

वाल्मीकि के गुरु नारद मुनि थे ।

महर्षि वाल्मीकि की जाति भील है जो अनुसूचित जनजाति कैटेगरी में आती है ।

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