Rana Punja Bheel Jayanti 2021-22 | राणा पूंजा भील की जीवनी

राणा पूंजा भील (Rana Punja Bheel)

राणा पूंजा भील (Rana Punja Bheel) जयंती 2021-22

राणा पूंजा भील (Rana Punja Bheel) के बारे में इतिहास में भले ही ज्यादा कुछ ना कहा गया हो लेकिन उनके बहादुरी पूर्वक कार्यों ने उन्हें हमेशा के लिए अजर अमर बना दिया है। हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप के साथ मेवाड़ को मुगलों से आजाद कराने में राणा पूंजा भील की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

यहां तक कि गोरिल्ला युद्ध का रणनीति जिसने मुगलों को हार स्वीकार करने के लिए मजबूर कर दिया था इस रणनीति के जनक भी राणा पूंजा ही थे। आज ज्यादातर लोग राणा पूंजा भील (Rana Punja Bheel) के बारे में नहीं जानते हैं लेकिन ये एक बहुत ही महान और वीर योद्धा थे।

राणा पूंजा भील (Rana Punja Bheel) गीत

“राणा पूंजा” की मुछ में देखो कितनी है ललकार जी
“भीलो की सेना” को देखो जम के करें प्रहार जी
राणा पूंजा की मुछ में देखो …….

खन-खन खन-खन भाले खनके चले धनुष से बाण भी
मुगलों के माथों को काटे पुंजा की तलवार जी
राणा पूंजा की मुछ में देखो …….

भीलों की टोली ने बोली “जय जय महाकाल” की
अकबर की सेना में देखो मच गई हाहाकार जी
राणा पूंजा की मुछ में देखो …….

‘महाराणा’ का ‘चेतक’ गरजा भाला करे घमसान जी
आज़ादी का परवाना वो जाने है संसार जी
राणा पूंजा की मुछ में देखो …….

राणा पूंजा, महाराणा की यारी बनी मिशाल जी
इनकी युद्ध नीति के आगे अकबर हुआ लाचार जी
राणा पूंजा की मुछ में देखो …….

महाराणा ने दिया पुंजा को “राणा” का सम्मान जी
राजसभा में राणा पूंजा का करते सब सत्कार जी
राणा पूंजा की मुछ में देखो …….

भीलो ने खाई कसम थी रक्षा करें “मेवाड़” की
राणा पूंजा की फौज की कर लो तुम भी जय जय कार जी
राणा पूंजा की मुछ में देखो …….

ऐसा बेटा पैदा हो ये चाहत है हर मांई की
पुंजा के गुण गाण गाए ‘मगराज’ है गीतकार जी
राणा पूंजा की मुछ में देखो …….

मगराज भील (MagRaj Bheel) जोधपर (राज.)

Rana Punja Bheel Jayanti 2021-22 | राणा पूंजा भील की जीवनी
Rana Punja Bheel Jayanti 2021-22 | राणा पूंजा भील की जीवनी

राणा पूंजा भील (Rana Punja Bheel) की जीवनी

यदि बात करें इनके जन्म की तो ये मेरपुर के मुखिया “दुदा होलंकी” (राणा पूंजा भील (Rana Punja Bheel) के पिता) के परिवार में जन्मे थे। इनकी माता का नाम “केहरि बाई” था। ये भील जाति के थे। राणा पूंजा बचपन से ही तीरंदाजी में बहुत निपुण थे। मात्र 15 वर्ष की उम्र में इनके पिता “दुदा होलंकी” की मृत्यु हो गई जिनके बाद इन्हें मेरपुर के मुखिया का पद दिया गया।

इस समय इन्हें अपनी जिंदगी में बहुत कुछ सीखने को मिला। इतने अल्प आयु में इनके ऊपर जनता का ध्यान रखने का जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गया जिसके कारण इन्होंने अल्पायु में ही युद्ध विद्या और लोगों को नेतृत्व करना सीख लिया था। इन्हें अपने प्रजा से काफी प्रेम भी मिला।

कुछ समय के बाद राणा पूंजा भील (Rana Punja Bheel) को भोमट का राजा बना दीया गया। इन्हें अपने राजस्व के समय में जनता का पूरा समर्थन मिला जिसके कारण पूरे मेवाड़ में इनकी ख्याति धीरे-धीरे फैल गई।

राणा पूंजा भील (Rana Punja Bheel) और महाराणा प्रताप (Maharana Pratap)

1576 में जब मुगल सम्राट अकबर के नजर मेवाड़ पर पड़ी तब वहां के राजा महाराणा प्रताप को अंदेशा हो गया कि अकबर जरूर उनके राज्य पर हमला करेगा और अकबर से जितना आसान भी नहीं था क्योंकि महाराणा प्रताप की सेना मुगल सेना के सामने बहुत छोटी थी।

लेकिन राणा बप्पा रावल के समय से ही भील समुदाय के वीर सैनिक मेवाड़ की सेवा करते आ रहे थे इसीलिए महाराणा प्रताप ने राणा पूंजा भील (Rana Punja Bheel) को मातृभूमि मेवाड़ की रक्षा के लिए मदद मांगी तब राणा पूंजा भील बिना एक क्षण सोचे उन्होंने महाराणा प्रताप की बात मान ली और उन्हें यह आश्वासन भी दिया कि वह अपने प्राण की चिंता किए बिना अपनी पूरी सेना के साथ महाराणा प्रताप का सहयोग करेंगे और किसी भी कीमत पर मुगल को मेवाड़ को जितने नहीं देंगें।

राणा पूंजा भील (Rana Punja Bheel) और मेवाड़ का राज्य चिन्ह

महाराणा प्रताप ने यह सुनते ही राणा पूंजा भील (Rana Punja Bheel) को गले लगा कर उन्हें अपने भाई का दर्जा दिया। जिसके कारण उस समय जयवंता बाई जो मेवाड़ की राजमाता थी उन्होंने राजा पूंजा भील को राखी बांधी थी इसीलिए तब से लेकर आज तक पूरा राजपूत समुदाय भील समुदाय के लोगों को मामा कहते हैं

महाराणा प्रताप ने उस समय मेवाड़ के लिए एक राज्य चिन्ह बनाया था जिसमें उन्होंने एक तरफ राजपूत तो दूसरी तरफ राणा पूंजा भील (Rana Punja Bheel) को अंकित किया गया जो आज तक वैसा ही चिन्ह है। आज भी यह चिन्ह सिटी पैलेस के सबसे ऊपरी भाग में शोभायमान है।

अब महराणा प्रताप की सेना पूरी तरीके से तैयार थी मुगलों का सामना करने के लिए। मुगलों ने भी मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया। मुगलों के सामने मेवाड़ की सेना बहुत छोटी लग रही थी जिसके कारण मुगलों से जीत पाना संभव नहीं लग रहा था।

राणा पूंजा भील (Rana Punja Bheel) की युद्ध निति

कहां मेवाड़ की सेना पांच भागों में बंटी हुई थी जिसमें 86000 सैनिक थे वहीं मेवाड़ की सेना में मात्र 9000 सैनिक थे। इसके अतिरिक्त मुगल सेना के पास ,घोड़े और तोप भी उपलब्ध थी। वहीं महाराणा प्रताप की सेना के पास तीर, तलवार और भाले के अतिरिक्त और कुछ नहीं था।

इसीलिए मुगलों के साथ युद्ध करने के लिए राणा पूंजा ने गोरिल्ला युद्ध की रणनीति बनाई। जिसमें मेवाड़ की सेना पहाड़ और चट्टानों के पीछे छिपकर मुगलों पर तीर चलाती थी जिसका अंदेशा मुगल सेना को तनिक भी नहीं होता था।

जिसके कारन महाराणा प्रताप की सेना मुगलों के सेना पर काबू पाने में सफल हो पाए। इस रणनीति के कारण मेवाड़ की सेना ने मुगल सेना को हराने में पूरी तरीके से सक्षम हो पाई और मुगल सेना को पीछे मुड़कर भागना पड़ा

राणा पूंजा भील (Rana Punja Bheel) का शौर्य, पराक्रम, त्याग और बलिदान

मेवाड़ के लिए राणा पूंजा भील (Rana Punja Bheel) ने जो शौर्य, पराक्रम, त्याग और बलिदान दिखाया उसे मेवाड़ की धरती ही नहीं बल्कि संपूर्ण भारत याद रखेगा। इसी के कारण उन्हें सम्मान देने के लिए उनकी प्रतिमा को उदयपुर में रैती स्टैण्ड चौराहे पर स्थापित की गई हैं।

आज भी मेवाड़ के राजपूत लोग भील जाति के साथ कोई भी भेदभाव नहीं करते। साथ ही प्रतिवर्ष 5 अक्टूबर को मेवाड़ के लोग वीर राणा पूंजा भील की जयंती बड़ी धूमधाम से मनाते हैं।

FAQ On Rana Punja

राणा पूंजा का जन्म - 5 अक्टूबर को हुआ था।

राणा पूंजा भील जाति के थे।

राणा पुंजा के पिता का नाम "दुदा होलंकी" था।

राणा पुंजा के माता का नाम "केहरि बाई" था।

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