Shabri Mata Jayanti: शबरी जयंती 2022, जानिए इस दिन का महत्व और माता शबरी की ये दिलचस्प कथा
शबरी माता (Shabri Mata) की जंयती फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाई जाती है, इस दिन शबरी माता और भगवान श्री राम की पूजा की जाती है। शबरी माता जयंती 2022 में बुधवार 23 फरवरी को हैं।
जो रामायण की संपूर्ण कथा को जानता है वह शबरी के बारे में जरूर जानता होगा क्योंकि रामायण में शबरी का भी उल्लेख किया गया है। भगवान राम माता सीता की खोज में शबरी के आश्रम पहुंच गए थे और वहां पर शबरी ने श्री राम का बहुत ही आदर भाव से स्वागत किया था।
शबरी माता (Shabri Mata) भगवान श्री राम के परम भक्त थी और वह वृद्ध अवस्था तक श्री राम की प्रतीक्षा करती रही। इस आस में कि एक दिन श्री राम उसके कुटिया में आएंगे और इसीलिए वह हमेशा उनके स्वागत में अपने कुटिया और आसपास के रास्तों को साफ करा करती थी।

हालांकि इस कथा को हर कोई जानता है लेकिन इस कथा के अलावा शबरी के बारे में कोई भी ज्यादा कुछ नहीं जानता। इसीलिए आज के पोस्ट में हम आपको शबरी के बारे में और भी चीजें बताएंगे जिसे आप निश्चित ही पहले नहीं जानते होंगे। तो पोस्ट को पूरा पढ़ें।
शबरी माता (Shabri Mata) का जीवन परिचय
शबरी माता (Shabri Mata) भील जाति की थी। इसका असली नाम श्रमना था जो बाद में शबरी में रूपांतरित हो गया। शबरी के पिता भील जाति के मुखिया थे। शबरी के पिता का नाम ” अज ” था और माता का नाम ” इंदुमती ” था।
शबरी आम लोगों की तरह नहीं थी। बचपन से ही वह बहुत अलग थी। बचपन से ही वह पंछियों से बातें भी किया करती थी, जो सभी के साथ-साथ उनके माता-पिता के लिए भी बहुत आश्चर्य की बात होती थी।
शबरी माता (Shabri Mata) जब धीरे-धीरे बड़ी हो गई तो उसके हाव-भाव और विचारों में बहुत बदलाव आया जो उनके माता-पिता के समझ के परे थे। इसीलिए जब उनके माता-पिता ने किसी साधु से इस बारे में पूछा तो साधु ने शबरी के विवाह करा देने की बात कही।
शबरी माता (Shabri Mata) का विवाह
इसीलिए शबरी के माता-पिता ने भील जाति के ही एक राजकुमार के साथ शबरी का विवाह तय कर दिया। विवाह तय हो जाने के बाद शबरी के पिता ने विवाह में लोगों को भोज खिलाने के लिए अपने घर के आंगन में बहुत सारे पशुओं को लाकर इकट्ठा कर दिया।
उन पशुओं को देख शबरी ने जब उनके पिता से इन पशुओं को यहां पर इकट्ठा करने का कारण पूछा तो उनके पिता ने कहा कि इन पशुओं की उनकी (शबरी) विवाह के समय बलि दि जाएगा।
इसे सुन शबरी बहुत आहत हुई। वह नहीं चाहती थी कि इन निर्दोष और बेजुबान पशुओं को बलि देकर उनका विवाह हो। इसलिए शबरी विवाह के 1 दिन पहले अपने घर से भागकर दंडकारण्य वन में पहुंच गई।
शबरी माता (Shabri Mata) और उनके गुरु मतंग ऋषि (matang rishi)
उस वन में मतंग ऋषि (matang rishi) रहा करते थे। शबरी माता (Shabri Mata) उनकी सेवा करना चाहती थी लेकिन भील जाति की होने के कारण उसे डर था कि मतंग ऋषि उसे यह अवसर नहीं प्रदान करेंगे।
इसीलिए शबरी छुप-छुप कर रोज सुबह ऋषियो के उठने से पहले उनके आश्रम के आसपास की सफाई कर देती थी और आश्रम से नदी तक के रास्ते में कांटे- कंकड चूनकर रास्ता साफ कर देती थी।
एक दिन मतंग ऋषि को इस बारे में पता चल गया। वे शबरी के इस सेवा भाव को देखकर बहुत प्रसन्न हुए। इसीलिए मतंग ऋषि ने शबरी को अपने आश्रम में शरण दे दी।
मतंग ऋषि का अंत समय आया तो उन्होंने शबरी को बुलाया और कहा कि तुम इसी आश्रम में ही रहना और भगवान श्री राम की प्रतीक्षा करना क्योंकि भगवान श्री राम एक दिन जरूर आएंगे।
शबरी माता (Shabri Mata) और भगवन श्री राम, लक्ष्मण (shri Ram, Lakshan)
इसके बाद शबरी का पूरा जीवन भगवान श्री राम की प्रतीक्षा में ही बिता। शबरी हर दिन भगवान श्री राम की प्रतीक्षा करती और उनके स्वागत की पूरी तैयारी करती।
वह पूरे रास्ते की सफाई करती और फूलों से सजा देती। वह रोज चखकर मीठे बेर इकट्ठा करती। हालांकि कई ऋषि मुनियो उसका मजाक भी उड़ाया करते थे कि भगवान श्री राम तेरी कुटिया में कभी नहीं आने वाले लेकिन शबरी ने कभी भी अपनी उम्मीद नहीं छोड़ी और वह बस केवल भगवान श्री राम की प्रतीक्षा करती रही।
ऐसा करते करते शबरी माता (Shabri Mata) को बहुत वर्ष बीत गए और अब शबरी वृद्ध हो चुकी थी। लेकिन एक दिन शबरी को पता चला कि दो युवक उसे खोज रहे हैं। शबरी को लगा वह निश्चित ही भगवान श्रीराम होंगे।
शबरी उनके पास जाती है और अपने अश्रु से उनके पांव को धोती हैं। उन्हें बहुत ही सत्कार से अपने कुटिया में लाती हैं और अपने चखे हुए मीठे बेर को श्री राम को खाने के लिए देती हैं। भगवान श्री राम भी शबरी के इस भक्ति को देख भाव विभोर हो जाते हैं। और शबरी के मीठे बेर खाते हैं। और फिर शबरी अपना शरीर त्याग कर वैकुंठ चली जाती है और श्री राम सीता की खोज में आगे रव़ाना हो जाते हैं।
तो यही थी शबरी माता (Shabri Mata) की जीवन की कहानी जिसके बारे में शायद आप लोगों को पहले नहीं पता होगा। शबरी भगवान श्री राम की परम भक्त थी इसीलिए उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन भगवान श्री राम की प्रतीक्षा में बिता दिया।
शबरी की कुटिया कौन से वन में थी?
शबरी माता की कुटिया को शबरी भील का आश्रम कहा जाता है, जो वर्तमान में कर्नाटक में स्थित है।
माता शबरी पूर्व का नाम क्या थी?
शबरी माता का असली नाम (पूर्व का नाम ) श्रमणा था।
माता शबरी कौन सी जाति की थी?
शबरी माता भील जाति की थी।
शबरी ने भगवान राम को क्या खिलाया?
अपने चखे हुए मीठे बेर को श्री राम को खाने के लिए देती हैं। भगवान श्री राम भी शबरी के इस भक्ति को देख भाव विभोर हो जाते हैं। और शबरी के मीठे बेर खाते हैं।
शबरी के गुरु कौन था?
शबरी के गुरु मतंग ऋषि (matang rishi) थे।
माता शबरी के माता पिता का क्या नाम था?
शबरी के पिता का नाम " अज " था और माता का नाम " इंदुमती " था।
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