Best Whatsapp status in hindi बेस्ट व्हाट्सएप्प स्टेटस इन हिंदी

Good morning whatsapp status hindi गुड मॉर्निंग व्हाट्सएप्प स्टेटस हिंदी
Good morning whatsapp status hindi गुड मॉर्निंग व्हाट्सएप्प स्टेटस हिंदी

Good morning Whatsapp status hindi गुड मॉर्निंग व्हाट्सएप्प स्टेटस हिंदी

Whatsapp status in hindi मित्रों आजकल हर व्यक्ति जिसके पास मोबाइल फोन है। उसके फोन में Whatsapp व्हाट्सएप मैसेंजर जरूर होता है। अभी के टाइम Whatsapp व्हाट्सएप लोगों के साथ बातचित करने का एक बहुत अच्छा साधन हो गया है। व्हाट्सएप के सहारे हम लोगों की छोटी बड़ी न्यूज से जुड़ सकते हैं। Whatsapp status in hindi व्हाट्सएप्प स्टेटस इन हिंदी पर लोग अपनी रोजमर्रा कीजीवन के बारे में कुछ न कुछ पोस्ट करते है। चाहे वह कहीं पर आना-जाना हो या कहीं घूमना-फिरना हो। इस तरह से हमारे को उनके बारे में पता लग जाता है। इसके अलावा Whatsapp status in hindi बेस्ट व्हाट्सएप्प स्टेटस इन हिंदी पर बहुत सारे सुविचार भी पोस्ट करते हैं, जिसे पढ़कर हम सब लोग काफी प्रभावित भी होते हैं। यदि कोई विचार या फोटो हम सबके के साथ शेयर करना चाहते हैं, तो हम उसे बस Whatsapp status व्हाट्सएप स्टेटस पर पोस्ट कर देते हैं , वह सबके पास पहुंच जाती हैं।

Good morning whatsapp status गुड मॉर्निंग व्हाट्सएप्प स्टेटस

यह जगत एक बड़ी व्यायामशाला (अखाड़ा ) है, जहां हम अपने आपको पुष्ट/बलवान बनाने आते हैं। *विवेकानंद*

दुनिया में गाय बनने से काम नहीं चलता–जितना डरोगें, यह दुनिया उतना ही डराएगी। *प्रेमचंद*

इस दुनिया में तीन तरह के आदमी हैं – एक इंजन की तरह, दूसरे गाड़ी की तरह और तीसरे ब्रेक की तरह। *उपेन्द्रनाथ अश्क *

यह दुनिया मतलब से मतलब रखती है, जैसे कोई आम फल से रस चूस लेता है, छिलका और गुठली फेंक देता है। *हजारी प्रसाद द्विवेदी *

संसार एक सुन्दर किताब है। जो व्यक्ति इसे पढ़ नहीं सकता, उसके लिए यह व्यर्थ की चीज है। *गोल्डोनी*

साधना से ही सिद्धि प्राप्त होती है। *भृर्तहरि*

साहस वीरों का प्रथम गुण है। *सुभाषित*

साहस से ही सफलता मिलती है। *सुभाषित*

मानव ने नाना प्रकार के आस्वादन में ही अपनी उपलब्धि करनी चाही है, बाधाहीन लीला के क्षेत्र में। उसी विराट उचित लीला जगत् की सृष्टि है साहित्य। *रवीन्द्रनाथ टैगोर*

साहित्य के अन्तर्गत सारा वाङ्मय लिया जा सकता है जिसमें अर्थबोध के अतिरिक्त भावोन्मेष तथा चमत्कारपूर्ण अनुरंजन हो तथा ऐसे वाङ्मय की विचारात्मक समीक्षा-व्याख्या हो। *आचार्य रामचन्द्र शुक्ल *

ज्ञान राशि के संचित कोश का नाम ही साहित्य है। *महावीर प्रसाद द्विवेदी*

किसी भी देश का साहित्य वहां की प्रजा की चित्तवृत्ति का संचित्र प्रतिबिम्ब होता है। *आचार्य रामचन्द्र शुक्ल*

महत् साहित्य का गुण है-अहपूर्णता अर्थात् मौलिकता। साहित्य जब अत्यन्त शक्तिमान् रहता है तब वह चिन्तन को ही नये रूप में प्रकाशित कर सकता है। यही उसका काम है, इसी का नाम है मौलिकता। *रवीन्द्रनाथ ठाकुर*

सम्मान प्राप्त होने पर सम्मान के प्रति प्रकट की गई उदासीनता व्यक्तियों के महत्व को बढ़ा देती है। *मोहन राकेश*

प्रख्यात मृतक पुरुषों का सर्वश्रेष्ठ सम्मान हम उनका अनुकरण करके ही करते हैं। *महात्मा गांधी*

महान् पुरुष को अपना सम्मान जीवन से कहीं अधिक मूल्यवान् होता है। *शेक्सपियर*

शरीर को रोगी और दुर्बल रखने के समान कोई दूसरा पाप नहीं। *लोकमान्य तिलक*

बीमारी प्रकृति के साथ किए हुए अत्याचार का प्रतिकार है। *होसिया बैलू*

प्रथम महान सम्पत्ति है, सुन्दर स्वास्थ्य। *इमर्सन*

मनुष्य की स्थिति उस घड़ी के समान है जिसे अच्छे से रखा जाए तो सौ सालों तक काम दे सकती है और लापरवाही से बरती जाए तो जल्दी खराब जाती है। *स्वेट मार्डन*

भविष्य के आगे भगवान ने काला पर्दा लगाया है, जिसके पार हम देख नहीं सकते। केवल सही-गलत का अनुमान लगाते हैं। भूतकाल वह गई जलधारा है जो लौटेगी नहीं। वर्तमान काल तुम्हारी मुट्ठियों से फिसलती रेत है, कसकर पकड़ो, इसमें कुछ स्वर्ण-रजत कण भी हैं। अत: वर्तमान में जियो। *सुधाशुंजी महाराज*

समय अमूल्य है। संसारभर की दौलत से भी इसे खरीदा नहीं जा सकता। व्यक्ति को हमेशा यह मानकर चलना चाहिए कि गुजरी जवानी और बीता समय कभी लौटकर नहीं आते। *अज्ञात*

दुनिया क्या कहेगी? मुझ पर हंसेगी तो नहीं? ऐसे दुर्बल विचारों को मन में स्थान न देकर अपने को जो योग्य लगे, वैसा काम हमेशा करना चाहिए। यही सारे जीवन का रहस्य है। *स्वामी विवेकानंद*

युद्ध क्षेत्र में मेरी हार हो गई तो क्या हुआ? सर्वस्व तो नहीं चला गया है? मेरी अजेय संकल्प शक्ति तो अभी कायम है, पुनः युद्ध की तैयारी करूंगा और इस कर्मयुद्ध को जीतकर रहूंगा। *मिल्टन*

जैसे अंधे प्राणी के लिए संसार अंधकारमय है और आंखों वाले के लिए प्रकाशमय। वैसे ही अज्ञानी के लिए यह संसार दुखों का समूह है और ज्ञानी के लिए आनंदमय। *वाराहोपनिषद*

देह ही नहीं जो दिल से भी गुलाम हो गये हैं, वे कभी आजादी हासिल नहीं कर सकते। *महात्मा गांधी*

स्वतंत्रता का सही उपयोग स्वतंत्रता देने में अधिक है, लेने में नहीं। *जैनेन्द्र कुमार*

यदि परतंत्रता स्वतंत्रता के नाम पर आए तो उससे मुक्त होना बड़ा कठिन हो जाता है। *विनोबा भावे*

स्वतंत्र होकर ही कोई दूसरे को स्वतंत्र कर सकता है। *श्री अरविंद*

स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। *लोकमान्य तिलक*

कोई देश बिना आजादी के अच्छी तरह नहीं जी सकता और न आजादी बिना सत्कर्म के बरकरार रह सकता है। *रूसो*

स्वतंत्रता का मूल्य है अनवरत देखभाल। *जॉन फिलपॉट*

जब इंसान मुस्काया तब जगत ने उससे प्यार किया, जब उसने ठहाका लगाया तब संसार उससे डर गया। *रवीन्द्रनाथ टैगोर*

सभ्यताओं के विषय में वही जान सकते हैं, जो स्वयं सभ्य हों। *अनाम*

मानव जाति का अन्त इस तरह होगा की सभ्यता अन्नतः उसका गला घोट देगी। *इपर्सन*

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सभ्यता की एक मात्र कसौटी है सहनशीलता। *आर्थर हैल्वस*

सभ्यता का उद्देश्य होता है-सभी वस्तुओं को कापुरुषों तक भी पहुंचना। *नीत्शे*

विषम मानसिक परिस्थिति में एक मिनट का समय ब्रह्मा के एक कल्प के समान हो जाता है। *अमृतलाल नागर*

समय सफल चोर का सबसे बड़ा मित्र है। *प्रेमचंद*

विनाश काल में मनुष्य की बुद्धि विपरीत हो जाती है। *चाणक्य*

वक बदलने पर लोगों की नजरें भी बदल जाती हैं। *जयशंकर प्रसाद*

समय, सत्य के अतिरिक्त हर चीज को कुतर कर खाता है। *हक्सले*

एक युग विशाल नगरों का निर्माण करता है। एक क्षण देने से उसका ध्वंस कर देता है। *सेनेका*

परमेश्वर एक बार एक ही पल देता है और दूसरा पल देने से पूर्व उस पल को ले लेता है। *स्वेट मार्डन*

मैंने समय को नष्ट किया और अब समय मुझे नष्ट कर रहा है। *शेक्सपियर*

सामान्य व्यक्ति समय को यों ही गंवा देते हैं, मनस्वी उसका सदुपयोग करता है। *शोपेन हावर*

समय की पाबन्दी सुशीलता का चिह्न है। *सम्राट लुई*

समय को नष्ट मत करो, क्योंकि यही जीवन का निर्माण तत्व है। *फ्रेंकलिन*

यदि तुम्हें एक क्षण का भी अवकाश मिले, तो उसे सद्कर्म में लगाओ क्योंकि कालचक्र आप से क्रूर व उपद्रवी है। *वेद व्यास*

बार-बार समझाने पर भी जो नहीं समझता, जिंदगी उसे छोड़कर आगे बढ़ जाती है। *बर्नाड शॉ*

श्रद्धा-शून्य बुद्धि अपंग है। यदि केवल बुद्धि सर्वशक्ति सम्पन्न होती तो समस्त पंडित लोग मोक्ष धाम तक पहुंच चुके होते। जहां बुद्धि रुक जाती है वहां श्रद्धा तथा विश्वास के बल पर ही मानव सफलता के मार्ग तक पहुंच सकता है। *-काका कालेलकर*

जो बीत गया, उसे याद करके रोने से कोई लाभ नहीं। तुम उसे छोड़कर आगे आ चुके हो। अब अपनी अगली यात्रा की चिंता करो। उसे सुधारने का प्रयत्न करो। बीते हुए के गुणगान या निंदा में अपना आज का कीमती समय बरबाद न करो। बीते समय के जिक्र से कोई लाभ नहीं होगा किंतु समय की भरपाई आप नहीं कर पाएंगे। *अज्ञात*

जो कुछ तुम चाहते हो दूसरे लोगों को तुम्हारे साथ करना चाहिए, वही तुम उनके साथ करो, क्योंकि कानून और धर्म की यही आज्ञा है। *टॉलस्टाय*

समय सत्य का पथ-प्रदर्शक है। *सिसरो*

पैसे का बल ही वास्तविक सम्मान है। *यशपाल*

सत्य गोपनीयता से घृणा करता है। *महात्मा गांधी*

सत्य एक ही है, दूसरा नहीं, सत्य के लिए समझदार व्यक्ति विवाद नहीं करते। *महात्मा बुद्ध*

सत्य के आविर्भाव में दो साथियों की सहायता होती है, एक उसे कहने वाला, दूसरा उसे समझने वाला। *खलील जिब्रान*

ईश्वर की दया के बिना साधु नहीं मिलते। *गोस्वामी तुलसीदास*

संत वह है जिसमें कोई बुराई न हो, जिसमें क्रोध न हो, जिसकी इच्छाएं आत्मा में केन्द्रीभूत हो गई हों और जिसका खजाना ‘नाम’ है। *समर्थ गुरु रामदास*

संत समाज आनंद और मंगलदाता होता है, वह संसार में सचल तीर्थराज प्रयाग है। *गोस्वामी तुलसीदास*

संतोष को कभी नहीं छोड़ना चाहिए। इस मंत्र से कठिन-से-कठिन समय में मन विचलित नहीं होता। *प्रेमचंद *

जो खुशकिस्मत हैं, संतोष रखते हैं। अगर तू भी खुशकिस्मत होना चाहता है तो संतोष के नूर से अपनी जान रोशन कर। *शेख सादी*

सबसे अधिक प्राप्ति उसी को होती है, जो संतुष्ट होता है । *शेक्सपियर*

संतोष तो प्रयास करने में है, उपलब्धियों में नहीं। *महात्मा गांधी*

सभ्यता तो आचार-व्यवहार का वह तरीका है जो मनुष्य को उनका कर्त्तव्य मार्ग बतलाता है। *महात्मा गांधी*

अधिक संचय करने वाला चोर है और दण्डनीय है। *श्रीमद्भगवद्गीता*

धन का संचय करना चाहिए, लेकिन आवश्यकता से अधिक संचय नहीं करना चाहिए। *हितोपदेश*

जैसे एक-एक बिन्दु से धीरे-धीरे घड़ा भर जाता है, उसी तरह विद्या, धर्म और धन का भी संग्रह करने से विशाल संग्रह हो जाता है। *चाणक्य*

जिस समाज में सदाचार नहीं, वह नष्ट हो जाता है। *लोकमान्य तिलक*

सदाचार मानव का धर्म है। *गौतम बुद्ध*

परमात्मा के स्थान पर मैं सदाचारी की पूजा करता हूं। *अरविंद*

दुखों से जिसका मन उदास नहीं होता, सुखों में जिसकी आसक्ति नहीं होती तथा जो राग, भय और क्रोध से रहित होता है उसी को स्थित-प्रज्ञ कहते हैं। *श्री मद्भागवत गीता*

इच्छाशक्ति रहे तो मनुष्य शून्य से भी सबकुछ पैदा कर सकता है और इच्छाशक्ति के अभाव में उसकी सारी प्रतिभाएं एवं योग्यताएं व्यर्थ सिद्ध होती हैं। *स्वामी बुधानंद*

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जिस प्रकार श्रम शरीर को शक्ति प्रदान करता है, उसी प्रकार कठिनाइयां मनुष्य को शक्ति-सम्पन्न बनाती हैं। *सेनेक*

आपत्तियों को जो आपत्ति नहीं समझते, वे आपत्तियों को ही आपत्ति में डालकर वापस भेज देते हैं। *तिरुवल्लुवर*

जीवन के लक्ष्य को भूल जाना ही प्रमाद है। प्रमाद मृत्यु है और आलस्य जिंदा आदमी की कब्र है। जीव में रस का अभाव ही आलस्य को जन्म देता है। विचार और वाणी में भेद जीवन को थका देते हैं। *रमेश भाई ओझा*

अनुशासन के अभाव में व्यक्ति की शक्तियां समाज के लिए अभिशाप बनकर बिखरती हैं। मन-वाणी और शरीर के लक्ष्यविहीन, अमर्यादित और असंयत प्रयोग व्यक्ति के व्यक्तित्व को कुरूप तो बनाते ही हैं, समाज के सुख-समृद्धि और शांति को भी हानि पहुंचाते हैं। ऐसे लोगों के कारण सारा वातावरण दूषित हो जाता है। मानवता का अवमूल्यन होने लगता है। इसलिए व्यक्ति की शक्तियों का एकोन्मुख होना आवश्यक है। *नीरज जैन*

सपना चित्त वृत्ति का दर्पण है। *फ्रायड *

सपने सच होने लगें तो कर्म की क्या जरूरत? *जार्ज बर्नार्ड शॉ

संयमहीन स्त्री या पुरुष को गया-बीता समझिए। *महात्मा गांधी*

संयमहीन जीवन आपदाओं का भण्डार होता है। *अनाम*

सुख की इच्छा रखने वाले को संयम का जीवन व्यतीत करना चाहिए। *मनुस्मृति*

बलवान् बनने के लिए जरूरी बात है, संयम। *विनोबा भावे*

सर्वशक्तिमान वही है जो आत्मसंयमी है। *सेनेका*

जो आत्मसंयमी नहीं होते वे स्वतंत्र भी नहीं होते। *पाइथागोरस”

संदेह में सज्जन के अंतःकरण की प्रकृति ही सत्य का निर्देश करती *कालिदास*

सत्य की एक चिंगारी असत्य के एक पहाड़ को भस्म कर सकती। *प्रेमचंद*

संगति के अनुरूप ही व्यक्ति अथवा वस्तुओं में परिवर्तन आता है। *भृर्तहरि*

अगर आदमी सम्मान चाहे तो सम्माननीय लोगों का संग करे। *लायर*

मुझे बताइए आपके संगी-साथी कोन हैं? मैं बता दूंगा कि आप कौन हैं? *गैटे *

अगर तू अक्लमंद होशियार है तो जाहिलों की संगत मत कर। *शेख सादी*

बुरे साथी हमें नरक में ले जाने के लिए निमंत्रित और प्रलोभित करते हैं। *फील्डिंग*

जो जैसी संगति करता है वो वैसा फल पाता है। *महात्मा गांधी*

हमारा चरित्र कितना ही दृढ़ हो, पर उस पर संगति का असर अवश्य होता है‌। *प्रेमचंद*

मधुर संगीत आत्मा के ताप को शांत कर सकता है। *महात्मा गांधी*

संगीत मानव की विश्वव्यापी भाषा है। *लांगफैलो*

संगीत को देवदूतों की भाषा ठीक ही कहा गया। *कार्लाइल*

वीर बड़े अवसरों का इंतजार नहीं करते, वे छोटे अवसरों को ही बड़ा बना लेते हैं। *सरदार पूर्ण सिंह*

यदि ठीक मौकों पर साधनों का ध्यान रखकर काम करो और समुचित साधनों का उपयोग करो तो कुछ भी असम्भव नहीं। यदि परिस्थितियां अनुकूल हैं तो सीधे अपने ध्येय की ओर चलो। यदि न हों तो उस मार्ग का अनुसरण करो जिसमें सबसे कम बाधा आने की सम्भावना हो। *तिरुवल्लुवर*

जगत न दुख है, न सुख! जगत वैसा ही हो जाता है, जैसी कि हमारी दृष्टि है। दृष्टि ही सृष्टि है, प्रत्येक स्वयं अपने जगत का निर्माण करता है। यदि तुझे जीवन का प्रत्येक क्षण दुख देता है तो कहीं-न-कहीं तेरी दृष्टि में दोष है। *ओशो*

विपत्तियां आने पर भी मनुष्य को सत्य और विवेक का साथ नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि यदि ये दोनों साथ हैं तो विपत्तियां स्वयं ही समाप्त हो जाएंगी। *चाणक्य*

यदि तुम गुणों का विकास करना चाहते हो तो गुणानुराग का विकास करो, गुणी व्यक्ति को सामने रखो, उसके गुणों के बारे में सोचो, अनुमोदन करो। बाहर का यह कार्य भीतर एक शक्ति पैदा करेगा और तुम गुणी बन जाओगे। *महाप्रज्ञ*

मनुष्य से बड़ी कोई ताकत नहीं है। उसमें अपार शक्ति है। आदमी ताकत का खजाना है। उसके लिए सब काम सरल हैं, बशर्ते वह ठान ले। मन बना ले तो वह आकाश छू सकता है। मन में बात जमनी चाहिए। मनुष्य हार नहीं सकता। यदि वह मन में संकल्प ले ले तो कठिन-से-कठिन काम भी कर सकता है। आदमी हमेशा अपने आपसे हारा है, उसे किसी दूसरे ने नहीं हराया, इतिहास इसका गवाह है। *रमेश थानवी*

संघर्ष वह सामाजिक प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति या समूह अपने विरोधी को प्रत्यक्ष रूप से हिंसा या हिंसा की चुनौती देकर अपने उद्देश्यों की पूर्ति करना चाहता है। *गिलिन*

इच्छाओं का संघर्ष यह प्रकट करता है कि जीवन व्यवस्थित होना चाहिए। *खलील जिब्रान*

अपरिग्रह से मतलब यह है कि हम उस किसी चीज का संचय न करें जिसकी हमें आज दरकार नहीं है। *महात्मा गांधी*

जो मनुष्य निरुत्साह, दीन और शोकाकुल रहता है, उसके सभी काम बिगड़ जाते हैं और वह बड़े संकट में पड़ जाता है। *वाल्मीकि रामायण*

महान् संकट में और जब आशा बहुत कम हो, तब सबसे निडर सम्पति ही सबसे बड़ी सुरक्षा है। *लिवी*

संकट का काल ही मानव-आत्मा की कसौटी है। *टामस पेन संकल्प*

इतिहास. पुराण साक्षी हैं कि मनुष्य के संकल्प के सम्मुख देव, दानव सभी पराजित होते हैं। *इमर्सन*

दृढ़ संकल्प एक गढ़ के समान है जो भयंकर प्रलोभनों से हमको बचाता है और दुर्बल एवं डावांडोल होने से हमारी रक्षा करता है। *महात्मा गांधी*

जैसा आपका संकल्प होगा, उसको आपके भीतर का सच्चा बल पूरा कर देगा। *स्वामी रामतीर्थ*

सज्जनों के संकल्प कल्पवृक्षों के फलों की भांति शीघ्र ही परिपक्व हो जाते हैं। *कालिदास*

दृढ़ संकल्प का साधना कामधेनु गाय है। निःस्वार्थ भाव ही उसे दोह सकता है। *वृन्दावन लाल वर्मा*

सगे-संबंधी सुख के साथी हैं। *तुलसीदास*

पैसा किसी का सगा नहीं होता। *कहावत*

सगा ही दगा देता है। *कहावत*

छोटी-छोटी वस्तुओं को संगठित करने से भी कार्य सिद्ध हो जाता है, जैसे घास की बंटी हुई रस्सियों से मतवाले हाथी बांधे जाते हैं। *हितोपदेश*

संगठन में अपार शक्ति है। संगठित होकर ही शक्तिशाली शत्रु पर विजय पायी जा सकती है। *चाणक्य*

संगठन द्वारा छोटे राज्य भी उन्नत हो सकते हैं, किन्तु विभेद होने से बड़े राज्य भी विनष्ट हो जाते हैं। *सालसिट*

श्रम और उद्योग चुम्बक के समान हैं जो सब अच्छे-अच्छे पदार्थों को पास खींच लेते हैं। *बर्टन*

जंग लगकर नष्ट होने की अपेक्षा (श्रम करते हुये) घिस-घिसकर खत्म होना कहीं अच्छा है। *बिशप कंवर लैंड*

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जो सम्पूर्ण प्राणियों को शान्त रखने का प्रयत्न करता है, सर्वदा सत्य व्यवहार करता है, कोमल स्वभाव होकर सबका सम्मान करता है, सर्वदा शुद्ध भाव से रहता है, वह कुल में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। *विदुर*

वह कभी शहद प्राप्त नहीं कर सकता, जो मक्खियों के डंक से डरता है। *शेक्सपियर*

सर्वश्रेष्ठ मनुष्य वही है, जिसने मनरूपी राक्षस को अपने वश में कर लिया है। *मीराबाई*

दुर्भाग्य और निर्धनता ही ऐसे संघर्ष स्थल हैं जहां बहादुरों का जन्म होता है। *विक्टर ह्यूगो*

बुरी आदतों से हमारी क्षुद्रता का आभास मिलता है। *एडलर*

जो दूसरों पर शासन करना चाहता है, उसे पहले स्वयं पर शासन करना चाहिए। *मैसिंशर*

वास्तविक गौरव आत्मविजय से उत्पन्न होगा अन्यथा विजेता होकर भी विजित रहोगे। *थॉमसन*

मनुष्य का आचरण बताता है कि वह कुलीन है या अकुलीन, योग्य है या अयोग्य। *वाल्मीकि*

प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में ऐसा समय आता है, जब उसे अपने स्वप्न साकार होते दिखाई देते हैं। ऐसा समय कोई भी हो सकता है, प्रात:काल, दोपहर, सायंकाल या रात्रि। सफलता जिस समय भी मुस्कराती हुई उसका स्वागत करने के लिए तैयार होती है, वही समय सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होता है। परंतु यदि व्यक्ति उस एक क्षण का भी स्वागत करने के लिए, अर्थात उस अवसर को ग्रहण करने के लिए तैयार नहीं है तो वह उस अवसर से वंचित ही रह जाता है। *अज्ञात*

जो मनुष्य इंद्रियों को मन द्वारा नियमित करके रागरहित होकर कर्मेद्रियों द्वारा कर्मयोग का आरम्भ करता है, वह श्रेष्ठ पुरुष है। *श्रीमद्भगवद्गीता*

वास्तव में वे ही लोग श्रेष्ठ हैं जिनके हृदय में सर्वदा दया और धर्म बसते हैं, जो अमृतवाणी बोलते हैं तथा जिनके नेत्र नम्रता से नीचे रहते हैं। *मलूक दास*

किसी के बहुत सताने पर भी, उसे सताने का प्रयास नहीं करना चाहिए, क्योंकि दुःखी प्राणी का शोक ही सताने वाले का नाश कर देता है। *महाभारत*

पेट तो श्वान भी भर लेता है। तुम उससे भी गये बीते हो, जो निठल्ले बैठे हो। *कार्लाइल*

प्रेम में कुछ मान भी होता है, कुछ महत्व भी। श्रद्धा तो अपने को मिटा डालती है और अपने मिट जाने को ही अपना इष्ट बना लेती है। *प्रेमचंद*

बुद्धि में सद्विचार रखना श्रद्धा है। श्रद्धा मनुष्य को शक्ति देती है और जीवन को सार्थक बनाती है। -विनोबा भावे श्रद्धा का अर्थ है आत्मविश्वास और आत्मविश्वास का अर्थ है-ईश्वर पर विश्वास। *महात्मा गांधी*

उद्यमी के चरणों पर श्री लौटती है। *सुभाषित*

कायर षड्यंत्र का सहारा लेते हैं। *भीम*

जिस श्रम से हमें आनंद प्राप्त होता है, वह हमारी व्याधियों के लिये अमृत तुल्य है, हमारी वेदना की निवृत्ति है। *शेक्सपियर *

श्रम करने वाले ही समाज के उद्धारक हैं, और जाति के पुनर्निर्माता। *यूजिनी वी० देव*

श्रम ईश्वर की उपासना है। *कार्लाइल*

स्वच्छता और श्रम मनुष्य का सर्वोत्तम वैद्य है। *रोमसिन*

श्रम से स्वास्थ्य और स्वास्थ्य से संतोष पैदा होता है। *बेट्टी*

श्रम सभी पर विजयी होता है। *होमर*

मनुष्य में जो संपूर्णता गुह्य रूप से विद्यमान है उसे प्रत्यक्ष करना ही शिक्षा का कार्य है। *विवेकानंद*

देह और आत्मा में अधिक-से-अधिक जितने सौन्दर्य और जितनी संपूर्णता का विकास हो सकता है, उसे सम्पन्न करना ही शिक्षा का उद्देश्य है। *प्लेटो*

मिट्टी, पानी और प्रकाश के साथ पूरा-पूरा सम्बन्ध रहे बिना शरीर की शिक्षा सम्पूर्ण नहीं होती। *रविन्द्रनाथ टैगोर*

सच्ची शिक्षा के मानी है, ईश्वर की आंखों से चीजों को देखना-सीखना। *स्वामी रामतीर्थ*

ज्ञानी विवेक से सीखते हैं, साधारण मनुष्य अनुभव से और मूर्ख आवश्यकता से। *सिसरो शील*

बिना सेवा किये शील प्राप्त नहीं होता जैसे बिना तेज के रूप का विकास नहीं होता। *गोस्वामी तुलसीदास*

प्रत्येक व्यक्ति के अभिप्राय को सुनो, परंतु सुनकर एकदम से बहक न जाओ। उस पर विचार करो, जिससे आत्मा सहमत हो, वही करो। बातें सुनने में जितनी कर्णप्रिय होती हैं; उनके अंदर उतना रहस्य नहीं होता। रहस्य वस्तु की प्राप्ति में है, दर्शन में नहीं। मिश्री का स्वाद चखने से आता है, देखने से नहीं। *मुनि गणेश वर्णी*

जिसके पास विश्वास है, उसके पास सबकुछ है, जिसके पास विश्वास नहीं, उसके पास कुछ भी नहीं। ईश्वर के नाम पर विश्वास हो तो असम्भव सम्भव हो सकता है। विश्वास ही जीवन है और अविश्वास मृत्यु। *रामकृष्ण परमहंस*

सांसारिक सफलताओं में जितना सहायक मानसिक संतुलन होता है, उतना संभवतः संसार का अन्य कोई साधन कदाचित ही उपयोगी सिद्ध हो सकता है। *डॉ. प्रणव पंड्या*

हमें ऐसा व्यक्ति बनना है जो गाता-चहकता अपने काम में जुटा रहता है, जो थोड़े समय में ही अधिक काम कर लेता है। इसी से हमारा जीवन सफल होता है। *कार्लाइल*

विचार तलवार की अपेक्षा तेज है। विचार नया जीवन प्रदान करता है। *साने गुरुजी*

भूल कुछ नया सीखने का अवसर होती है, बशर्ते हम इस अवसर का अर्थ और महत्त्व समझें। भूल का अर्थ अज्ञानता या अपराध नहीं, भूल हो जाना एक सहज प्रक्रिया है, पर यदि इस भूल का अहसास व्यक्ति को नहीं होता और फिर भूल सुधारकर बेहतर बनने की भावना उसके मन में नहीं आती तो वह गलत होगा, इसलिए बेहतर बनने के किसी भी अवसर को हाथ से न जाने दो। *स्वामी अखण्डानंद*

शील द्वारा चरित्र का निर्माण होता है, शील हमारी गति के लिए संबल है। *रवीन्द्रनाथ टैगोर*

धर्म-कर्म, सत्य-सदाचार, शक्ति एवं लक्ष्मी सभी शील पर आश्रित हैं। शील ही इन सब की जड़ है। *वेदव्यास*

शैतान बाहर नहीं है। देखो तुम्हारे मन के कोने में छिपा बैठा है। *सुकरात*

खाली दिमाग शैतान का घर होता है। *कहावत*

चाँदनी रात में शैतान घूमता है। *डिजरायली शोक*

शोक की सीमा कंठावरोध है, पर शुष्क और दाहयुक्त है। आनंद की सीमा भी कंठावरोध है, किन्तु आर्द्र और शीतल। *प्रेमचंद*

एक बुद्धिमान् पुत्र प्रसन्न पिता बनता है। *बाइबिल*

महापुरुष जन्म-सिद्ध शिशु है। जब वह मरता है तो अपना शिशुत्व संसार को प्रदान कर जाता है। *रविन्द्रनाथ टैगोर*

शिशु ऊपर से देखने पर तो सभी पर आश्रित है, किन्तु वस्तुतः वही सम्पूर्ण परिवार का सम्राट होता है। *विवेकानंद*

whatsapp status in hindi one line

छोटे बच्चे तो परब्रह्म भगवान की छोटी-छोटी मूर्तियां हैं। *साने गुरुजी*

विश्वास और निर्दोषिता शिशु के अतिरिक्त और किसी में नहीं पाये जाते। *दांते*

शिशु को वही शिक्षा दो जिस मार्ग पर उसे चलना चाहिए और वह वृद्ध हो जाने पर भी उसे भूलेगा नहीं। *बाइबिल*

तुम्हें क्या चाहिए, जो कुछ चाहिए उसे मुस्कराहट के बल पर प्राप्त करो न कि तलवार के बल से। *शेक्सपियर*

शिष्टाचार के द्वारा कोई भी मनुष्य संसार में उन्नति कर सकता। *अनाम*

शिष्टाचार शारीरिक सुन्दरता के अभाव को पूर्ण कर देता है। केवल वही व्यक्ति सबसे अधिक सुन्दर है, जो अपने शिष्टाचार द्वारा दूसरों का हृदय जीत लेते हैं। शिष्टाचार के अभाव में सौन्दर्य का कोई मूल्य नहीं होता। *स्वेट मार्डन*

जिन्होंने मनुष्य पर शासन करने की कला का अध्ययन किया है, उन्हें यह विश्वास हो गया है कि युवकों की शिक्षा पर ही राज्य का भाग्य आधारित है। *अरस्तू*

गधे से तीन शिक्षाएं ले सकते हैं-अत्यंत थक जाने पर भी अपने संरक्षक की आज्ञा पर बोझ ढोना, सर्दी-गर्मी की परवाह न करना और सदा संतुष्ट रहकर विचरना। *चाणक्य*

कभी-कभी उन लोगों से भी शिक्षा मिलती है, जिन्हें हम अभिमानवश अज्ञानी समझते हैं। *प्रेमचंद*

बलवान् शत्रुओं से कभी वैर नहीं ठानना चाहिए। *महाभारत*

दुख का कांटा जब चुभता है तो अकड़ी हुई गरदन झुकती है। सुख का ताज जब सिर पर आता है तो हर किसी की गरदन अकड़ जाती है। सुख जाता है तो दुख देकर जाता है। यह कहकर जाता है कि मेरी कद्र तो तुम कर नहीं पाए लेकिन अब जो आ रहा है, वह बार-बार तुम्हें मेरी याद कराएगा कि तुम्हारे पास ऐसा कुछ था जिसे तुम संभाल नहीं पाए। दुख में सुख बहुत याद आता है, लेकिन सुख में दुख याद नहीं आता। समझने के लिए यह आवश्यक है कि सुख में दुख को भी याद कर लो। *सुधांशुजी महाराज*

यह संसार साहस और मर्दानगी की प्रशंसा करता है और ऐसे व्यक्ति को घृणा की दृष्टि से देखता है जो इस संसार में अपने पैदा होने की बात को अपराध मानकर क्षमाप्रार्थी की-सी सूरत बनाए रहता है। *वैरागी बाबा*

जो आदमी यह जानता है कि वह क्या है, उसे शीघ्र ही यह भी ज्ञात हो जाएगा कि उसे क्या होना चाहिए। *सेचलिंग*

पहले यह आवश्यक है कि व्यक्ति के विचारों में आत्मसम्मान हो, फिर व्यवहार में तो वह स्वयं ही आ जाएगा। दृढ़ता के साथ व्यक्ति जिन गुणों और योग्यताओं पर अपना अधिकार घोषित करेगा, वह वास्तव में उसका अधिकारी भी हो जाएगा। *अज्ञात*

नम्रता बुद्धिमत्ता का ही एक अंग है और इससे व्यक्ति की शोभा भी होती है, परंतु किसी भी व्यक्ति को अपना आत्मविश्वास कम नहीं करना चाहिए। मनुष्य की मनुष्यता का वही श्रेष्ठ गुण है। *कोसूथ*

यदि एक वृक्ष को फल और फूलों से युक्त पूर्ण वृक्ष बनना है तो उसकी जड़ों को खूब नीचे तक जाना होगा। इसी प्रकार की नींव पर मानसिक प्रशिक्षण और सुधार का सुंदर भवन खड़ा होता है। किसी भी नवयुवक में ऐसा आत्मविश्वास होना चाहिए जो उसे निम्न स्तर से ऊंचा उठाए और उसे दूसरों के तिरस्कार से मुक्त कराए। *फ्रायड*

हमारी इन्द्रियां ही हमारी सबसे बड़ी शत्रु हैं। *शंकराचार्य*

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शत्रुओं में अशत्रु होकर रहना परम सुख है। *महात्मा बुद्ध*

शत्रुता वह सबसे भयानक होती है, जो एक बार प्रेम करने के बाद हो जाती है। *भगवतीचरण वर्मा*

शांति के समान कोई तप नहीं, संतोष से बढ़कर सुख नहीं, तृष्णा से बढ़कर कोई व्याधि नहीं और दया के समान कोई धर्म नहीं। *चाणक्य*

जब संघर्ष आवश्यक हो, तब शांति की कल्पना में तत्पर रहना, निश्चित रूप से शांति मिटाना है। *महाभारत*

जो मनुष्य सब कामनाओं का त्याग कर ममतारहित, अहंकाररहित और स्पृहारहित होकर विचरता है, उसी को शांति प्राप्त होती है। *श्रीमद्भगवद्गीता*

अपने अन्दर ही यदि शांति मिल गई तो सारा विश्व शांतिमय प्रतीत होता है। *योगवासिष्ठ*

मनुष्य की शांति की परख समाज में ही हो सकती है, हिमालय की चोटी पर नहीं। *महात्मा गांधी*

आनंद उछलता-कूदता जाता है, शांति मुस्कराती हुई चलती है। *हरिभाऊ उपाध्याय *

वे देश शांति के सबसे शत्रु प्रबल हैं, जो बहुत बड़े होने पर भी दुर्बल हैं। *दिनकर *

शांति का मूलाधार शक्ति है। *महाभारत*

डंडे चलाने वाला शासक एक दिन भागता है। *व्हाट ह्विटमैन शासन*

जनेच्छानुसार चालित शासन स्थायी होता है। *वाशिंगटन*

अपनी शक्ति को प्रकट न करने से शक्तिशाली मनुष्य भी अपमान सहन करता है। काठ के भीतर रहने वाली आग को लोग आसानी से लांघ सकते हैं, लेकिन जलती हुई अग्नि को नहीं। *पंचतंत्र*

सबसे बड़ी कठिनाई में से सबसे बड़ी शक्ति निकलती है। *अरविंद*

शक्ति स्वयं एक स्वतंत्र सत्ता है जो किसी भी प्रकार के प्रतिबंध को नहीं स्वीकार करती। *भगवतीचरण वर्मा*

अपनी शक्ति में विश्वास रखना ही शक्तिवान होना है। *स्वामी दयानंद सरस्वती*

शरीर मिट्टी के कच्चे घड़े के समान क्षणभंगुर है। शरीर की क्षणभंगुरता का बोध होने पर तथा परमात्मनिष्ठ हो जाने पर मनुष्य का मन जहां-तहां जाता है, उसके लिए वहीं उपाधि बन जाती है। *चाणक्य*

स्वस्थ शरीर आत्मा के लिए अतिथिशाला के समान हैं, और अस्वस्थ शरीर बंदीगृह के समान। *बेकन*

जिस प्रकार घोंघा अपने खोल से बद्ध है, उसी प्रकार हम भी अपने शरीर से बद्ध हैं। *विटमैन*

अहंकारी व्यक्ति बढ़-चढ़कर बातें बनाते हैं। वे सदा अपने मुंह से अपना ही गुणगान करते रहते हैं जो उनके ओछेपन का ही लक्षण है। अपनी सफलता की शेखी बघारने वाले अहंकारी होते हैं तथा साथ ही मूर्ख भी। *संतवाणी*

मेरे लिए वर्तमान ही सबकुछ है। भविष्य की चिंता हमें कायर बना देती है। भूत का भार हमारी कमर तोड़ देता है। *प्रेमचंद*

आत्मविश्वास और अपने प्रति श्रद्धा प्रत्येक कार्य के लिए आवश्यक और प्राथमिक गुण है। आत्मविश्वास के द्वारा ही मनुष्य बड़ी-बड़ी विपत्तियों का सामना करके भी महान कार्य करने में सफल हो जाता है। आप इसी से अनुमान लगाएं कि यह गुण कितना शक्तिशाली व जादुई है। *शब्द प्रकाश*

आत्मविश्वास शरीर में रुधिर की तरह होता है, जिस प्रकार बिना रुधिर के शरीर जीवित नहीं रह सकता, उसी प्रकार बिना आत्मविश्वास के कोई सफल नहीं हो सकता। *शब्द प्रकाश*

प्रबुद्ध तथा शिक्षित बुद्धि वाले व्यक्ति को उसका उचित स्थान मिल ही जाता है, पर उसके लिए आवश्यक है कि छिपा न रहे, घर में दबा न रहे, उसे यह आशा नहीं रखनी चाहिए कि दूसरे उसे स्वयं ढूंढ लेंगे। *वाशिंगटन इरविंग*

यह जीवन बार-बार नहीं मिलता। अब समय है कि मनुष्य इस जीवन का पूरा-पूरा लाभ उठाए। उस चीज को पकड़े, उस चमत्कार को देखना शुरू करे जो उसके अंदर है। यह जीवन क्या है, इसको समझना शुरू करे। अपने हृदय की प्यास बुझाए ताकि उसके जीवन में शांति आ सके। अशांति से बचे और उस शांत जगह में प्रवेश करे जहां आनंद-ही-आनंद है। *संत महाराज*

तुम्हारा शरीर पवित्रता का मंदिर है। *बाइबिल*

शरीर धर्म की रहने की जगह होने के कारण तीर्थ जैसा पवित्र है। *महात्मा गांधी*

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वह माता शत्रु और पिता वैरी है जिन्होंने अपने बालक को नहीं पढ़ाया। -चाणक्य *

किसी से शत्रुता करना अपने विकास को रोकना है। *विनोबा भावे*

शत्रु को भी कमजोर नहीं समझना चाहिए। *शेख सादी*

आलस्य ही मनुष्य की देह में रहने वाला सबसे बड़ा शत्रु है। *भृर्तहरि*

शंका विनाश का कारण है। शंका करने से बने-बनाए काम बिगड़ते हैं। *प्रेमचंद*

जब शंका हो तो काम करने से रुक जाओ। *जरथुस्ट्र*

शंका आत्मा में नरक की भूमिका निभाती है। *गैलेन*

मेरे शब्द ऊपर उड़ जाते हैं किन्तु मेरे विचार पृथ्वी पर ही रह जाते हैं। शब्द बिना विचारों के कभी स्वर्ग नहीं जा सकते। *शेक्सपियर*

असंभव शब्द मेरे कोश में नहीं है। *नेपोलियन*

शब्द पत्तों के समान है। जहां उनकी सर्वाधिक ‘बाहुलता’ है, वहां उनके बीच बुद्धिमानी का फल कदाचित् ही दिखलायी पड़ता है। *पोप*

प्रेम के शब्द चाहे कितने ही विलम्ब से और किसी प्रकार भी व्यक्त किये जाएं, सदैव सर्वश्रेष्ठ होते हैं। *जोना वैली*

शंकित व्यक्ति नपुंसक हो जाता है। *अष्टावक्र*

शकुन, अपशकुन का विचार कायर करते हैं। *मंडन मिश्र*

सबको प्रसन्न करने की शक्ति सबमें नहीं होती। *रवीन्द्रनाथ टैगोर*

शक्ति ही जीवन है, परम सुख है, जीवन अजर-अमर है। *विवेकानंद*

प्रतिबंधरहित शक्ति की भूख उसके उपयोग के साथ-साथ बढ़ती जाती हैं। *पं० जवाहरलाल नेहरू*

ज्ञान ही शक्ति है। *विवेकानंद*

जिसके पास अपनी शक्ति नहीं, उसे भगवान् भी शक्ति नहीं देता। शक्ति आत्मा के अन्दर से आती है, बाहर से नहीं। *सुदर्शन*

ईश्वर से हम जितना सम्बन्ध जोड़ेंगे, उतनी ही शक्ति हमें प्राप्त होगी। *स्वेट मार्डन*

जिस कार्य को पूर्ण करने का संकल्प लिया है, उसे क्षणिक असफलता के कारण अधूरा न छोड़ो। *शेक्सपियर*

दृढ़ निश्चयी व्यक्ति जब यह निश्चय कर लेता है कि उसे अमुक वस्तु प्राप्त करनी है तो उस वस्तु को प्राप्त करने से उसे कोई नहीं रोक सकता। *लिपी*

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आज हम जैसे कुछ भी हैं, जैसे भी हैं, यह हमारे गुजरे कल का नतीजा है; और नि:संदेह आज हम जो कुछ भी हैं, इसका प्रभाव हमारे कल पर पड़ेगा। आज हम जैसा बो रहे हैं, कल वैसा ही काटेंगे क्योंकि आज हम वही काट रहे हैं, जो कल बोया। इसलिए आज कुछ अच्छा बोएं, ताकि कल अच्छी फसल काटें। *अज्ञात*

सौभाग्य और दुर्भाग्य, ये दो शब्द व्यक्ति की दुर्बलता को दर्शाते हैं। पुरुषार्थ ही सबके लिए निर्णायक है। पुरुषार्थ से ही भाग्योदय सम्भव है। भाग्यशाली बनना है तो पुरुषार्थ करिए। *केशवदेव*

हमारे भाग्य का निर्माण करने वाले तीन ही मुख्य आधार हैं। हमारे विचारों से हमारे चरित्र का निर्माण होता है। इच्छाओं से अवसरों का तथा कर्मों से वातावरण का। ये तीनों मिलकर ही हमारे जीवन में सुख-दुख का कारण बनते हैं। *नन्दलाल दशोरा*

इस संसार को बाजार समझो। यहां सभी आदमी व्यापारी हैं। जो जैसा व्यापार करता है, वैसा फल पाता है। मूर्ख और गंवार व्यर्थ ही मर जाते हैं, लाभ नहीं पाते। *विद्यापति*

इस संसार में वैर कभी शांत नहीं होते। प्रेम से ही वैर शांत होते हैं। यही सदा का नियम है। *धम्मपद*

अपने दुःखों का अनुभव और दूसरों की आपत्ति का दृश्य बहुधा वह उत्पन्न करता है जो असंग, अध्ययन और मन की प्रवृत्ति से भी संभव नहीं। *प्रेमचंद*

प्रत्यक्ष वास्तव के प्रति हमारी अश्रद्धा जगा देना, वैराग्य साधना का श्रेष्ठ उपाय है। *रविन्द्रनाथ टैगोर*

जो व्यक्ति को कुचले वह अत्याचारी है, उसका नाम चाहे जो कुछ रख दिया जाये। *मिल*

महान् व्यक्तित्व की यह विशेषता है कि वहां सीमाएं होती हैं, पर एक-दूसरे को रोकती नहीं, बल्कि एक-दूसरे में खोना चाहती हैं। *जैनेन्द्र कुमार*

जो पराई स्त्री को पाप-दृष्टि से देखता है, वह परमात्मा के क्रोध को भड़काता है और अपने लिए नरक का रास्ता साफ करता है। *स्वामी रामतीर्थ*

जो दूसरे की स्त्री को बुरी दृष्टि से देखता है, वह मानसिक व्यभिचार करता है। *महात्मा गांधी*

शंकाओं की समाप्ति शान्ति का आरम्भ है। *पेट्रा*

हमारी शंकाएं विश्वासघातिनी हैं और हमें उन अच्छाइयों से वंचित रखती हैं जिन्हें हम प्रयत्न करके प्राप्त कर लेते हैं। *शेक्सपियर*

वही वीर प्रशंसित होता है, जो अपने को तथा दूसरों को दासता के बंधन से मुक्त कराता है। *आचरण वीरता*

कायरता की भांति वीरता भी संक्रामक होती है। -प्रेमचंद

वीरता मारने में नहीं; मरने में है, किसी की इज्जत बचाने में है, गंवाने में नहीं। *महात्मा गांधी*

सादी पोशाक ब्रह्मचर्य-पालन में मददगार होती है। *महात्मा गांधी*

जैसा देश वैसा भेष। *कहावत*

वेशभूषा बहुमूल्य भले ही हो, पर भड़कीली न हो। -कहावत

बहुमूल्य वेशभूषा भी किसी के सौन्दर्य को बढ़ा नहीं सकती। *शैन्स्टन*

कर्जे में डूबा कोई भी व्यक्ति मानसिक शांति का दावा नहीं कर सकता। आप एक बार कर्ज लेंगे, परंतु कर्ज बार-बार आपकी चेतना पर हावी हो जाएगा और आप महसूस करेंगे कि आप अपने ही मालिक नहीं रहे। *स्वेट मार्डेन*

जो विघ्नों के भय से कार्य आरम्भ नहीं करते, वे निम्न कोटि के होते हैं, जो विघ्न आने पर कार्य को बीच में ही छोड़ देते हैं, वे मध्यम कोटि के होते हैं और जो बार-बार विघ्नों के आने पर भी अपने आरम्भ किए हुए कार्य को बीच में नहीं छोड़ते वे उत्तम कोटि के पुरुष होते हैं। *शास्त्र*

यदि संसार में कोई ऐसी चीज है, जिसके लिए व्यक्ति को संघर्ष करना पड़े, तो वह केवल उसका लक्ष्य ही है और उसकी प्राप्ति में ही व्यक्ति को अपने सम्पूर्ण स्वरूप को प्रकट करने का अवसर प्राप्त होता है। *अज्ञात*

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यदि एक बार कोई व्यक्ति दृढ़ संकल्प करके आगे बढ़े, तो फिर उसके रास्ते की सभी बाधाएं स्वयं नष्ट हो जाती हैं। मार्ग कितना भी लम्बा क्यों न हो, कितना भी बलिदान क्यों न देना पड़े, परंतु दृढ़ संकल्प की शक्ति उसे उसके उद्देश्य तक अवश्य ही पहुंचा देती है। *शिव व्हौरिया*

जो व्यक्ति जीवन की यात्रा आरम्भ करना चाहते हैं, वे मेरे इस विचार को ध्यानपूर्वक पढ़ें-जब तक वे अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित न कर लें, वे एक कदम भी आगे न बढ़े और जब अपना लक्ष्य निर्धारित कर लें तो इंचभर भी पीछे न हटें। *सर विनवड लॉसन *

वेशभूषा पूर्णतः तीन बातों के समन्वय में है-आरामदायक, सस्ता तथा सुरुचिपूर्ण। *बोवी*

धर्म का भूषण वैराग्य है न कि वैभव। *महात्मा गांधी*

वैभव गुण के पीछे उसकी छाया की भांति चलता है। *सिसरो*

कुछ लोग तेजी से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं। वह तेजी से एक ग्राउंड तैयार कर लिया करते हैं, मगर अचानक एक स्थान पर जाकर उन्हें रुक जाना पड़ता है। सफर के प्रारम्भ में वे एक ऐसी वस्तु को नजरअंदाज कर देते हैं, जो अति महत्त्वपूर्ण होती है, वह है-अर्थ यानी धन। धनाभाव के कारण उनकी वहां तक की मेहनत व्यर्थ होती दिखाई देती है। *शब्द प्रकाश*

 

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