200 Motivational Quotes in Hindi | बेस्ट मोटिवेशनल कोट्स हिंदी

Best Motivational Quotes in Hindi | मोटिवेशनल कोट्स इन हिंदी
Best Motivational Quotes in Hindi | मोटिवेशनल कोट्स इन हिंदी

Best Motivational Quotes in Hindi | मोटिवेशनल कोट्स इन हिंदी

200 Motivational Quotes in Hindi बेस्ट मोटिवेशनल कोट्स हिंदी इंसान अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए हमेशा मोटिवेट रहता हैं और लगातार आने वाली मुश्किलों को हराकर आगे बढ़ते जाता हैं| मगर कभी-कभार हमारे जीवन में बाधाओं से लड़ने की हमारी जो ताकत एकदम निम्न हो जाती हैं, हम बिलकुल हारा महसूस करते हैं। तो हमें हार कर नहीं बैठना है हमें हमारे लक्ष्य की प्राप्ति के लिए निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए।

अगर कभी हारा हुआ महसूस करते हैं तो हमें उन महापुरुषों के कथनों को विचारों को याद करना है, पढ़ना है और उन विचारों की ताकत को हमें महसूस करना है। जैसे हम महसूस करेंगे उन शब्दों की ताकत को तो हमारे शरीर को एक पॉजिटिव ऊर्जा प्रदान करते है जो हमारे लक्ष्य को प्राप्त करने में हमारी मदद करत है तो आइए पढ़ते हैं ऐसे ही कुछ महापुरुषों के Best Motivational Quotes Thoughts Status in Hindi विचार :-

Motivational Quotes in Hindi Thoughts Status

Best Motivational Quotes in Hindi | मोटिवेशनल कोट्स इन हिंदी
Best Motivational Quotes in Hindi | मोटिवेशनल कोट्स इन हिंदी

धर्म का पालन करते हुए जो सम्पत्ति अर्जित हो जाता है, वही सच्ची सम्पत्ति है, जो अधर्म से प्राप्त होता है वह सम्पत्ति तो निंदनीय है। जगत में सम्पत्ति की इच्छा से कभी भी शाश्वत धर्म को नहीं छोड़ना चाहिए। *वेदव्यास*

जैसे रथ का पहिया इधर-उधर, ऊपर-नीचे घूमता है, वैसे ही धन भी विभिन्न व्यक्तियों के पास आता-जाता रहता है। वह कभी एक स्थान पर स्थिर नहीं रहता। *ऋग्वेद*

जो मनुष्य शोक से आतुर हो, ईर्ष्या से भरा हुआ हो, नाना प्रकार के कार्यों की चिंता कर रहा हो या किसी कामना में आसक्त हो, उसे नींद कैसे आ सकती है? *वेदव्यास*

यदि आप एक ही कर्म से सारे जगत को अपने वश में करना चाहते हैं तो दूसरों की निंदा रूपी धान्य भरे खेतों में विचर रही अपनी गौ रूपी वाणी को रोक लीजिए। *चाणक्य*

अनुचित आलोचना अपरोक्ष रूप से आपकी प्रशंसा ही है। याद रखिए कि कोई व्यक्ति मृत कुत्ते को लात नहीं मारता। *डेल कार्नेगी*

हमारे भीतर जो प्राण शक्ति है, उसी का नाम अमृत है। बच्चे के भीतर यह प्राण शक्ति या जीवन की धारा इतनी बलवती होती है कि उसके मन में मृत्यु का भाव कभी आता ही नहीं। यह असंभव है कि हम बच्चे को मृत्यु का ज्ञान करा सकें। *वासुदेव शरण अग्रवाल*

जीवन की सभी बुराइयों की औषधि है-प्रेम। *स्वामी शिवानंद*

इस संसार में दाता का स्थान ग्रहण करो। सबकुछ दे डालो और बदले की कोई चाह न रखो। प्रेम दो, सेवा दो, सहायता अर्पित करो-जो कुछ थोड़ा तुम से बन सकता है, वही दो। *स्वामी विवेकानंद*

गुरु की सहायता से जो लोग जीवन सागर तैरकर पार कर जाते हैं, ईश्वर के दरबार में सम्मान प्राप्त करते हैं। *गुरु नानक*

निरर्थक कलह करना मूर्यों का काम है। बुद्धिमानों को इसका त्याग करना चाहिए। ऐसा करने से लोग में यश मिलता है और अनर्थ का सामना नहीं करना पड़ता। *विदुर*

मनुष्य को चाहिए कि वह बात की रक्षा करे, क्योंकि बात बिगड़ जाने पर विनाश हो जाता है। *नारायण पंडित*

प्रतिभा स्वतंत्रता के वातावरण में ही मुक्त सांस ले सकती है। *स्टुअर्ट मिल*

धर्म न प्रतिपादन और न खंडन है और न ही बौद्धिक सहमति। धर्म का अर्थ है-अंतर्तम चेतना में सत्य की उपलब्धि। *स्वामी विवेकानंद*

जीव का अपवित्र मन ही प्रधान नरक है। उस मन की वेदना-चिंता, भय और अशांति ही नारकीय यातना है। *तत्व कथा*

रामराज्य माने प्रेम योग और साम्य योग-यानी प्रेम और समानता। *विनोबा भावे*

बिना त्याग के धन की शोभा नहीं होती और रसहीन वाणी भी शोभा रहित होती है। *अग्नि पुराण*

राजलक्ष्मी तो सांप की ज़बान के समान चंचल होती है। *भास*

किसके कुल में दोष नहीं है, कौन व्याधि से पीड़ित नहीं होता, कौन कष्ट में नहीं पड़ता और किसके पास लक्ष्मी निरंतर रहती है? *वृहस्पति नीतिसार*

जैसा तुम्हारा लक्ष्य होगा, वैसा ही तुम्हारा जीवन भी होगा। *श्रीमां*

बुद्धिमत्ता का लक्ष्य स्वतंत्रता है, संस्कृति का लक्ष्य पूर्णता है, ज्ञान का लक्ष्य प्रेम है और शिक्षा का लक्ष्य चरित्र है। *साईं बाबा*

अनुभव करता हूं कि काम करने से सबसे बड़ा पुरस्कार और अधिक काम करने का अवसर है। *एडवर्ड साल्क*

मुक्ति शून्यता में नहीं, पूर्णता में है। पूर्णता सृष्टि करती है, ध्वंस नहीं करती। *रवींद्रनाथ टैगोर*

तुम भले हो, जब तुम अपने लक्ष्य की ओर दृढ़ता और साहसपूर्वक पैर बढ़ाते हो। लेकिन तब भी तुम बुरे नहीं हो, जब तुम उस तरफ लंगड़ाते-लंगड़ाते जाते हो। लंगड़ाते हुए जाने वाले लोग भी पीछे की तरफ नहीं जाते। *खलील जिब्रान*

कोई यह कह सकता है कि उसने सफल जीवन बिताया। सफल जीवन की कसौटी धन और संपत्ति नहीं है। *स्वामी शिवानंद*

जीवन वर्तमान में आज और अभी है। उसे कभी भूत या भविष्य में न देखें। जिसने जीवन को भुत या भविष्य में देखा उसने जीवन को पहचाना ही नहीं। हमेशा ध्यान रखो जो सामने है वही सत्य है। उसके बाद जो कुछ भी है वह केवल कल्पना है। *रजनीश ओशो*

new motivational quotes in hindi

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धर्म के बाहरी रूप तोड़ते हैं, लेकिन आध्यात्मिक रूप जोड़ते हैं। इसलिए धर्म के आंतरिक रूप को ही महत्त्व दिया जाए। *विनोबा भावे*

समाज में धर्म है या नहीं, यह कैसे पहचाना जाए? असल में जिसमें त्याग है उसी में धर्म की आत्मा है। *साने गुरुजी*

धीर व्यक्ति विपत्तियों को पार कर लेते हैं। *बाणभट्ट*

विपत्ति काल में धैर्य नहीं छोड़ना चाहिए। धैर्य बनाए रखने पर अभीष्ट मिल सकता है। *महाभारत*

जो बलवान होकर कमजोर की रक्षा करता है वही मनुष्य कहलाता है। जो स्वार्थवश परहानि मात्र करता है, वह पशु तुल्य है। *स्वामी दयानंद*

सफलता के लिए सबसे जरूरी है आत्मविश्वास। जब तक आप स्वयं अपने में विश्वास नहीं करेंगे तब तक दूसरे आप पर कैसे विश्वास करेंगे? *स्वेट मार्डेन*

सभी को एक मित्र की आवश्यकता होती है और विशेषकर ऐसा मित्र की, जो सहायता कर सके। *निजामी*

स्वयं दुर्जन हैं वे ही सज्जनों को दुर्जन साबित करने के प्रयास में लगे रहते हैं। *वेदव्यास*

जो धर्म अहिंसा की कसौटी पर खरा उतरे वही सच्चा धर्म है। *महात्मा गांधी*

नियम बनाओ, किंतु उसे इस प्रकार बनाओ कि जब लोग बिना उसके काम चलाने लगें तो उन्हें तोड़कर फेंक सकें। हमारी मौलिकता पूर्ण अनुशासन के साथ पूर्ण स्वतंत्रता को संयुक्त कर देने में है। *स्वामी विवेकानंद*

यही स्वर्णिम नियम है कि स्वर्णिम नियम होते ही नहीं हैं। *बर्नार्ड शॉ*

केवल वही व्यक्ति सबकी अपेक्षा उत्तम रूप से कार्य करता है, जो पूर्णतया निस्वार्थी है, जिसे न तो धन की लालसा है, न कीर्ति की और न किसी अन्य वस्तु की। *स्वामी विवेकानंद*

motivational quotes in hindi for success मोटिवेशनल कोट्स इन हिंदी फॉर सक्सेस
motivational quotes in hindi for success मोटिवेशनल कोट्स इन हिंदी फॉर सक्सेस

 

एक छेद भी जहाज को डुबा देता है और एक पाप भी पापी को नष्ट कर देता है। *जॉन बन्यन*

उद्यमी व्यक्ति योग्य न हो, तो भी सिद्धि प्राप्त कर लेता है। *अज्ञात*

यह महापुरुषों का स्वभाव है कि वे आपत्ति में पड़े हुए लोगों से सहानुभूति रखते हैं। *सोमदेव*

स्वाभाविक मित्र भाग्य से ही मिलता है। इसलिए सच्चे मित्र को कभी नहीं खोना चाहिए। सच्चा मित्र सबसे बड़ा जीवन रक्षक है। *स्वेट मार्डेन*

जो अपने गुरुजनों का आदर नहीं करता वह अपना ही अपमान करता है, क्योंकि गुरुजनों ने ही उसका निर्माण किया है। *हितोपदेश*

ऐसी कोई बात किसी के मुंह पर मत कहो, जो उस मनुष्य के मुंह पर नहीं कह सकते। *अरुंडेल*

हमेशा इस बात का अहसास करना चाहिए कि जीवन का एक-एक पल तेजी से बीत रहा है। *स्वेट मार्डेन*

यदि बुद्धि अनुचित पथ पर न चले, तो विपत्ति कहां से उत्पन्न सकती है। *शक्तिभद्र*

विवेकी पुरुष को अपने मन में यह विचार करना चाहिए कि मैं कहां हूं, कहां जाऊंगा, मैं कौन हूं, यहां क्यों आया हूं और किसलिए किसका शोक करूं? *वेद व्यास*

संसार में रहो, पर संसार को अपने अंदर मत रहने दो। यही विवेक का लक्षण है। *साईं बाबा*

जब तक तुमने आप में विश्वास नहीं करते, परमात्मा में विश्वास नहीं कर सकते। *स्वामी विवेकानंद*

पृथ्वी पर ये तीनों व्यर्थ हैं-प्रतिभाहीन की विद्या, कायर का बल और कंजूस का धन। *बल्लाल*

जो वस्तु रक्षा के लिए रखी जाती है, कभी-कभी उसी से व्यक्ति का नाश हो जाता है। *कल्हण*

प्रेम क्या है? दूसरों के लिए सद्भाव। *नारायण पंडित *

चित्त में विकार उत्पन्न करने के कारण होने पर भी जिनका चित्त चंचल नहीं होता वे ही धीर पुरुष कहे जाते हैं। *कालिदास”

मृत्यु हमारे लिए रहस्य नहीं है। हम सब जानते हैं कि वह हम सबको आएगी। उसके बारे में हमें सिर्फ इतना पता नहीं चल पाता कि वह कब आएगी। *स्वामी रामतीर्थ*

मनुष्य की उम्र उसी प्रकार क्षीण होती जाती है जिस प्रकार अंजलि से बूंद-बूंद जल टपकता है। *महात्मा बुद्ध*

जो निष्काम कर्म की राह पर चलता है, उसे इसकी परवाह कब रहती है कि किसने उसका अहित साधन किया है। *बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय*

जितने धर्म प्रचारित किए गए, सब अपनी व्यापकता और सहृदयता के बल पर ही फैले। *निराला*

धर्म का पालन करते हुए जो धन प्राप्त होता है, वही सच्चा धन है। जो अधर्म से प्राप्त होता है वह धन तो धिक्कार देने योग्य है। धन की इच्छा से कभी शाश्वत धर्म का त्याग नहीं करना चाहिए। *वेद व्यास*

जीवन का महत्त्व इसीलिए है क्योंकि मृत्यु है। मृत्यु न हो तो जिंदगी बोझ बन जाएगी। इसलिए मृत्यु को दोस्त बनाओ। उससे डरो नहीं। *रजनीश*

जो बुद्धि में बली होते हैं वही बलिष्ठ माने जाते हैं जिसमें केवल शारीरिक बल होता है, वे वास्तव में बलवान नहीं समझे जाते। *वेद व्यास*

भय अंधविश्वास का प्रमुख स्रोत है। *बट्रेंड रसेल*

जो मेरे साथ भलाई करता है वह मुझे भला होना सिखा देता है। *टॉमस फुलर*

जहां स्थूल जीवन का स्वार्थ समाप्त होता है वहीं इंसानियत की शुरुआत होती है। *हजारी प्रसाद द्विवेदी*

ऐसे लोग संसार में विरले ही हैं जिन्हें परख कर संसार के भंडार में रखा जा सके, जो जाति और वर्ग के अभियान से ऊपर उठे हुए हों तथा जिनकी ममता और लोभ समाप्त हो गए हों। *गुरुनानक*

मैं मृत्यु का समय नहीं जानता, छिपा हुआ समय दिखाई नहीं देता। इसलिए भोगों का उपयोग किए बिना मैं भिक्षु बना हूं। मेरा यह समय बीत न जाए। *जातक*

एक ही झपट्टे में जैसे बाज बटेर को मार देता है, वैसे ही आयु क्षीण होने पर मृत्यु भी जीवन को हर लेती है। *सूत्र वृतांग*

सुगंधित पुष्प की स्वाभाविक स्थिति यही है कि उसे मस्तक पर ही धारण किया जाए, चरणों से अवताड़ित नहीं किया जाए। *भवभूति*

ज्ञानी पुरुषों को ही इस संसार में भय नहीं होता। *चाणक्य*

जीवन, धन और रूप बिजली की चमक की तरह चंचल हैं। *उत्तराध्ययन*

मन सरसों की पोटली जैसा है। एक बार बिखर गई तो उसे समेटना असंभव हो जाता है। *रामकृष्ण परमहंस*

उत्तम व्यक्ति दूसरों की उन्नति से दुखी नहीं होता। नीच लोग दूसरे की उन्नति से व्यथा पाते हैं। *माघ*

जीवन के निर्वाह के लिए धन अत्यंत आवश्यक है। लेकिन उसकी प्राप्ति होनी चाहिए सन्मार्ग से। *चिदानंद सरस्वती*

धर्म से अर्थ प्राप्त होता है। धर्म से सुख का उदय होता है। धर्म से ही मनुष्य सबकुछ पाता है। इस संसार में धर्म ही सार है। *वाल्मीकि*

विपत्ति काल में धैर्य नहीं छोड़ना चाहिए। संभव है कि धैर्य बनाए रखने पर अभीष्ट मिल ही जाए। समुद्र के बीच जहाज में दोष हो जाने पर भी नाविक पार पहुंचना ही चाहता है। *सत्यानंद*

चित्त में विकार उत्पन्न करने वाले साधन होने पर भी जिनके मन में विकार उत्पन्न नहीं होता वे ही धीर पुरुष कहे जाते हैं। *कालिदास*

अधिक मिलने पर भी संग्रह न करें। परिग्रह वृत्ति से अपने को दूर रखें। *आचारांग*

सेवा ही धर्म है, किसी को पीड़ा देना पाप है। शक्ति और पौरुष पुण्य है, कायरता और कमजोरी पाप। स्वतंत्रता पुण्य है, पराधीनता पाप। दूसरों से प्रेम करना पुण्य है, दूसरों से नफ़रत करना पाप। परमात्मा में और अपने आप में भरोसा पुण्य है, संदेह भी पाप है। *स्वामी विवेकानंद*

जो बुद्धि में बली होते हैं, वे ही बलिष्ठ माने जाते हैं। जिनमें केवल शारीरिक बल होता है, वे वास्तव में बलवान नहीं समझे जाते। *वेदव्यास*

जो दुर्बल होता है, वही सदा रोष और द्वेष करता है। हाथी चींटी से द्वेष नहीं करता, चींटी चींटी से द्वेष करती है। *महात्मा गांधी*

बार-बार कहने से झूठ सच में नहीं बदल जाता। *रुजवेल्ट*

महान होना अच्छा है, परंतु अच्छा होना अधिक महान है। *साईं बाबा*

महान लोगों की उदारता का भंडार कभी नहीं घटता। *बाणभट्ट*

पर्वत भारी होते हैं, पृथ्वी उनसे भी भारी है, ब्रह्मांड पृथ्वी से भी भारी है, लेकिन प्रलय में भी विचलित न होने वाला महापुरुष कहीं अधिक भारी है। *पंडित राज जगन्नाथ*

धर्महीन जीवित मनुष्य को मरे हुए के समान मानना चाहिए। धर्मयुक्त रहा मृत व्यक्ति भी निस्संदेह दीर्घजीवी ही है। *चाणक्य*

motivational quotes in hindi for students मोटिवेशनल कोट्स फॉर स्टूडेंट्स

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योग में स्थित होकर, तत्त्व को जानकर, मनुष्य मृत्यु काल से त्रस्त नहीं होता है। *अश्वघोष*

जीव उद्यम करता है, लेकिन फल प्रदाता तो भाग्य ही है। समुद्र मंथन से विष्णु को लक्ष्मी मिली तो शिव को विष मिला। *अज्ञात*

देवता काठ, पत्थर या सोने की प्रतिमा में नहीं हुआ करता है। जहां भी मनुष्य की भावना हो जाए, वहीं भगवान विद्यमान हैं। इसीलिए मनुष्य को भावना ही करनी चाहिए। *गर्ग संहिता*

बहुत बार भोजन करने से पुष्टि, कांति, उत्साह और बल में कमी आती है। *अश्वघोष*

दुर्जन यदि मीठा बोले, तब भी उस पर विश्वास न करो, क्योंकि उसकी जुबान पर शहद भरा रहता है और दिल में जहर। *चाणक्य*

मीठी बोली से संसार सुखी हो उठता है। *स्ट्रिकलैंड*

जो व्यक्ति स्वयं को सुस्थापित करना चाहता है, उसे शान्त भाव से उत्साह और आशापूर्वक प्रतीक्षा करनी चाहिए। उसकी इच्छाएं पूर्ण करने के लिए भाग्य स्वयं चलकर आएगा। *हेलेन विलियम्स*

निराशा उत्पन्न करने वाले लोगों, विचारों और सम्पर्कों से सदा दूर रहिए। आशा एक ज्योति है जो घोर अंधकार में भी हमें प्रकाश के होने का संदेश देती है। *अज्ञात*

मन में निरंतर निराशा के विचार या अनुत्साह के आने से व्यक्ति की आकांक्षाएं ही नहीं कुचली जातीं। वरन कार्य के लिए जागृति भी मंद पड़ती है, आदर्श स्पष्ट नहीं रहते, धुंधले पड़ जाते हैं और मानसिक शक्ति भी प्राय: नष्ट हो जाती है। *शिव व्हौरिया*

मैं समझता था कि दुख मुझे ही है, मगर दुख तो सारी दुनिया को है। जब ऊंचे चढ़कर मैंने देखा तो पाया कि यह आग तो हर घर में लग रही है। *शेख फरीद*

संसार में जन्म का दुख है, जरा, रोग और मृत्यु का दुख है, चारों ओर दुख-ही-दुख है। अतएव यहां प्राणी निरंतर कष्ट ही पाते रहते हैं। *उत्तराध्ययन*

जिसकी बुद्धि ही खोटी है, उसे शास्त्र भी भला-बुरा नहीं सिखा सकता। *वेदव्यास*

जो लोग आलस्य या प्रमाद के वशीभूत होकर समय को नष्ट करते हैं. समय उन्हें नष्ट कर देता है। *अजात*

जो जाग गया, वह भयमुक्त है, वह बुद्ध बन गया। वह अपनी सारी चिंताओं, अपनी महत्त्वाकांक्षाओं और अपने दुखों को भी निस्सारता जाता है। *गौतम बुद्ध*

जब तक जीवन में मौत का भय रहता है, तब तक आत्मा परिपूर्ण नहीं रह सकती। हम सुखी जीवन नहीं जी सकते। उसकी चिंता सोच में डूबे रहेंगे। यह ऐसी घटना है कि इसे बड़े सहज रूप से, प्रेम से स्वीकारने में ही आनन्द है, सुख है, जिसे टाल नहीं सकते, उससे लड़ने से भला क्या फायदा होगा? जब घटना घटनी ही है तो उसे खुशी से स्वीकार कर लो। *उपाध्याय डॉ. विशाल मुनि*

किसी को इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि अपने साथियों की चुगली करने, अपने अधिकारियों के दोष निकालने या अपने मातहतों की आलोचना करने के बावजूद आपको एक अच्छा मित्र, अच्छा कर्मचारी या एक अच्छा अधिकारी समझा जा सकता है। *अज्ञात*

सफलता के लिए जो त्यागना है, उसे त्यागें और जिसे अपनाना है, उसे अपनाएं, तभी आपकी सफलता निश्चित है। *शिव व्हौरिया*

विनम्रता और मधुर वचन ही इंसान के श्रेष्ठ आभूषण हैं। शेष सभी नाम मात्र के आभूषण हैं। *तिरुवल्लुवर*

अति क्रोध, कटु वाणी, दरिद्रता, स्वजनों से वैर, नीचों का संग और अकुलीन की सेवाएं, यह सब नर्क वासियों के लक्षण हैं। *चाणक्य*

किसी भी दशा में अपनी शक्ति पर घमंड न कर। वह बहरूपिया आकाश में हर पल सहस्रों रंग बदलता है। *हाफिज*

मुझे घमंड नहीं है-ऐसा भासित होने सरीखा। भयानक अभिमान और कोई नहीं। *विनोबा भावे*

अहंकार करना मूर्खों का काम है। *शेख सादी*

अहंकार देवताओं का भी सर्वनाश कर देता है। *ऋषि अंगिरा*

अहंकार मनुष्य का विनाश करता है। *मुनि वशिष्ठ*

अहंकारी का विनाश जरूर होता है। *तुलसीदास*

जिसने अहंकार करना छोड़ दिया, वह भवसागर तर गया। *योगवशिष्ठ*

पुराने धर्म में उसे नास्तिक कहा जाता था, जो ईश्वर में विश्वास नहीं करता था, किंतु नया धर्म उसे नास्तिक कहता है, जिसे स्वयं पर विश्वास न हो। *स्वामी विवेकानंद*

किसी भी सद्कर्म में अनिच्छा या आलस्य बिल्कुल वर्जित है। किसी की किसी प्रकार की सेवा में जो कष्ट होता है, उसे आनन्द के साथ ग्रहण करो। *मां आनन्दमयी*

हम किसी भी समय निकम्मे न रहें, यदि मन में विचार आए तो सेवा, परोपकार तथा प्रभु भक्ति की बात सोचें। मन एवं शरीर को किसी-न-किसी सत्-प्रवृत्ति में लगाए रखें। निठल्ले मन में असद् विचार के प्रवेश के लिए बहुत अधिक तथा शुभ विचार के लिए बहुत कम सम्भावना रहती है। *हनुमानप्रसाद पोद्दार*

क्रोधी मनुष्य को एक बार पुनः अपने ऊपर क्रोध आता है, जब उसे समझ आती है। *साइरस*

क्रोध शुरुआत मूर्खता से होता है और पश्चाताप पर खत्म होता है। *पाइथागोरस*

जब क्रोध नम्रता का रूप धारण कर लेता है, तो अभिमान भी सिर झुका लेता है। *सुदर्शन*

क्रोध से वही व्यक्ति सबसे अच्छी तरह बचा रह सकता है, जो ध्यान रखता है कि ईश्वर उसे देख रहा है। *प्लेटो*

अन्याय के लिए, पाप के लिए, अत्याचार के लिए क्रोध करना उचित है, मगर अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए क्रोध करना कदापि उचित नहीं। *संतवाणी*

अहंकारी परमात्मा से दूर हटता जाता है। अहंकारी सिर्फ पाना चाहता है, वह देना नहीं जानता। उसकी मांग है। वह अनन्त भिखमंगा है। वासना, तृष्णा, मोह, राग, द्वेष, कलह, स्वार्थ सब इसी की देन है। यानी अज्ञान का एकमात्र कारण है। इसी से आदमी अंधा हो जाता है, जिसे कुछ नहीं सूझता। *स्वर्णसूत्र*

जो वे सदा अपने मुंह से अपना ही गुणगान करते रहते हैं, उनके ओछेपन का ही प्रतीक है। वे अपनी सफलता की शेखी बघारने वाले अहंकारी होते हैं और साथ ही मूर्ख भी। *एन. एल. दशोरा*

मनुष्य का अहंकार कितना ही बड़ा क्यों न हो वह एक छोटे से कारण से ही गिर जाता है जिससे मनुष्य असहाय होकर तड़पने लगता है, जैसे कि कोई चट्टान धूल में मिल जाती है। *स्वर्णसूत्र*

समस्त भय और चिंताएं इच्छाओं का परिणाम हैं। *स्वामी रामतीर्थ*

कमजोरी का इलाज कमजोरी की चिंता करना नहीं बल्कि शक्ति का विचार करना है। प्राणियों के लिए चिंता ही ज्वर है। *जगदगुरु शंकराचार्य*

वेदांत की शिक्षा ग्रहण करने पर मनुष्य शोक, भय और चिंता से विमुक्त हो जाता है। *स्वामी विवेकानंद*

विपदाओं के समूह बाढ़ की लहरों के समान आया करते हैं। धीर पुरुष उन्हें चट्टान की तरह सहता रहे, तो धीरे-धीरे आप ही चले जाते हैं। *अमृत कलश*

जो बलवान होकर निर्बलों की रक्षा करता है, वही सच्चा मानव कहलाता है। बल के अहंकार में निर्बल का उत्पीड़न करने वाला तो पशु कहलाता है। *स्वामी दयानंद*

गुणों से मनुष्य साधु होता है और अवगुणों से असाधु। सद्गुणों को ग्रहण करो और अवगुणों को छोड़ दो। जो अपनी ही आत्मा द्वारा अपनी आत्मा को जानकर राग और द्वेष से समभाव रखता है, वही पूज्य है। *महावीर स्वामी*

भ्रमर सप्त फूलों की ओर आकर्षित होते हैं, मक्खी को गंदगी ही पसंद है। श्रेष्ठता सदा श्रेष्ठ तत्वों की ओर ही आकर्षित होती है, निकृष्ट व्यक्तियों के पास निकृष्ट विचार वाले स्वयं खिंचे चले आते हैं। *सर्वसूत्र*

जो व्यक्ति मन में उठे क्रोध को दौड़ते हुए घोड़े के समान शीघ्र रोक लेता है, वह एक अच्छा घुड़सवार है, क्रोध के अनुसार कार्य करने वाला केवल लगाम थामने वाला ही होता है। *महात्मा बुद्ध*

मनुष्य से मनुष्य को जितनी ईर्ष्या या जलन होती है, उतनी सम्भवत: यमराज को भी नहीं। *रवींद्रनाथ टैगोर*

ईर्ष्या की अग्नि तुम्हारे सत्कर्म को राख बना देती है। *ऋषि अंगिरस*

ईर्ष्या मनुष्य की सबसे बड़ी दुश्मन है। *चावार्क*

ईर्ष्या मनुष्यत्व का विनाश करती है। *याज्ञवल्क्य*

कुछ लोग अपनी उन्नति देखकर प्रसन्न होते हैं, किंतु दूसरे की उन्नति करते देखकर जलते हैं, ईर्ष्या करते हैं। यह एक भयानक दुर्गुण है। इसे आज ही त्याग दें अन्यथा किसी विषधर की भांति यह आपको डंस लेगा। *अज्ञात*

good morning motivational quotes in hindi गुड मॉर्निंग कोट्स इन हिंदी

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निंदा करने वाले या पीठ पीछे बुराई करने वाले मनुष्य के लिए मोक्ष के द्वार बंद है। *हजरत मोहम्मद*

मनुष्य के गोपनीय अवगुण प्रकट मत कर, इससे उसका सम्मान तो अवश्य घट जाएगा, किंतु तेरा तो विश्वास ही उठ जाएगा। *शेख सादी*

मेरे लिए वर्तमान ही सबकुछ है। भविष्य की चिंता हमें कायर बना देती है। भूत का भार हमारी कमर तोड़ देता है। *प्रेमचंद*

चिंताएं, परेशानियां, दुख और तकलीफें परिस्थितियों से लड़ने से दूर नहीं हो सकतीं। वे दूर होंगी अपनी भीतरी दुर्बलता दूर करने से, जिसके कारण वे पैदा हुई हैं। *स्वामी रामतीर्थ*

लोभ, क्लेश और कषाय परिगृहणरूपी वृक्ष के तने हैं और चिंता रूपी सैकड़ों सघन और विस्तीर्ण उप शाखाएं हैं। *महावीर स्वामी*

याद रखें, महान विजेता वही होते हैं जो किसी एक उद्देश्य को लेकर काम करते हैं और जिनकी दृढ़ता, जिनका संकल्प अविभाज्य है। *अज्ञात*

ज्ञान एवं कर्म, इन दोनों से ही जीवन को गति मिलती है। एक पंख से पक्षी उड़ नहीं सकता। एक पतवार से नाव को खेया नहीं जा सकता। केवल ज्ञान या केवल कर्म से ही जीवन को गति नहीं मिलती। एक के अभाव में दूसरा व्यर्थ है। *स्वर्णसूत्र*

कार्य मनोरथ से नहीं, उद्यम से सिद्ध होते हैं, जैसे सोते हुए सिंह के मुंह में मृग अपने आप नहीं चले जाते। *पंचतंत्र*

तैरना ही है तो निराशा में क्यों, आशा के समुद्र में तैरिए। आशा की समाप्ति जीवन की समाप्ति है। निराशा मृत्यु है। *अज्ञात*

जहां ममता नहीं होती, वहां वैर-द्वेष नहीं, बुरा करने, बुरा चाहने की प्रवृत्ति नहीं होती। ममता रहने पर यह सब होते हैं, यह स्वाभाविक है। जहां राग होता है, वहीं द्वेष होता है और राग-द्वेष से दैवी-सम्पदा का ह्रास होता है। राग यदि न मिटे, तो राग भगवान से करना चाहिए और द्वेष भगवत-विमुखता से। दुर्गुणों को सद्गुण की सेवा में लगा दें तो सारे दुर्गुण सद्गुण हो जाएंगे। *हनुमान प्रसाद पोद्दार*

जो व्यक्ति ‘पुल’ बनाने की अपेक्षा ‘दीवारें’ खड़ी कर रहा हो, उसे तन्हाई का रोना रोने का कोई अधिकार नहीं। *कन्फ्यूशियस*

उस जाति की स्थिति कितनी दयनीय है जो परस्पर वैमनस्य के कारण कई सम्प्रदायों में बंट चुकी है और हर संप्रदाय स्वयं को एक जाति मानने लगा है। *खलील जिब्रान*

संसार का संचालन करने के लिए मैं बंधा हुआ नहीं हूं। लेकिन ईश्वर ने मेरे लिए जो काम बनाया है, उसे अपनी सारी ताकत लगाकर पूरा करने के लिए मैं अवश्य ही बंधा हुआ हूं। *जीन एंजिला*

जिसमें तुम्हारी प्रवृत्ति है उसी में लगे रहो। अपनी बुद्धि के मर्म को मत छोड़ो। प्रकृति तुम्हें जो कुछ बनाना चाहती है, वही बनो। तुम्हें विजय मिलेगी। इसके विपरीत यदि तुम कुछ बनना चाहोगे तो कुछ भी न बन पाओगे। *सिडनी स्मिथ”

मेहनती मनुष्य की सहायता करने के लिए प्रकृत बाध्य है। मेहनती की सफलता निश्चित है। *स्वामी रामतीर्थ*

कर्म जीवन है और अकर्म का नाम मृत्यु है। अतः कर्म मनुष्य का स्वाभाविक धर्म है। चाहे वह इंद्रियों के माध्यम से किया जाए या ज्ञानेंद्रियों के, कर्म सार्थक और निर्माणात्मक होना चाहिए, न कि व्यर्थ और निष्क्रिय। प्रत्येक कर्म करने से पहले यह अवश्य देखना चाहिए कि हमारा कर्म व्यर्थ तो नहीं, जिसमें समय नष्ट नहीं हो रहा हो। *स्वामी रामानंद सत्यार्थी*

जीवन में शारीरिक और मानसिक परिश्रम के बिना कोई फल नहीं मिलता। दृढचित्त और महान उद्देश्य वाला मनुष्य जो करना चाहे, सो कर सकता है। *एरी शेफर*

जिस उद्देश्य को लेकर हमें मामूली भी संदेह हो, जिसके न्याययुक्त और अच्छा होने में जरा भी शक हो, उसे एकदम छोड़ देना चाहिए। *यशपाल जैन*

संसार में प्रत्येक कार्य में विजय पाने के लिए एकाग्रीय होना आवश्यक है। जो लोग चित्त को चारों ओर बिखेरकर काम करते हैं, उन्हें सैकड़ों वर्षों तक सफलता का मूल्य मालूम नहीं होता। *मार्ले*

मनुष्य के आचरण से उसके कुल का अनुमान लगता है, उसकी भाषा से उसके मूल देश का परिचय मिलता है और उसके द्वारा किए गए आदर-सत्कार से उसके हृदय की उदारता और कृपणता का अनुमान लग सकता है। *चाणक्य”

मैं जो कुछ भी हूं, वह केवल अपने परिश्रम से हूं। मैंने अपनी सारी आयु में सुस्ती से रोटी का एक टुकड़ा भी नहीं खाया। मेरी सफलता का रहस्य भी यही है। *वेब्स्टर*

यदि मनुष्य परोपकारी नहीं है तो उसमें और दीवार पर खिंचे चित्र में क्या फर्क है? *शेख सादी*

यदि मनुष्य निरंतर सुखी रहना चाहता है तो उसे परोपकार के लिए जीवित रहना चाहिए। *रवींद्रनाथ टैगोर*

उस व्यक्ति पर प्रभु की अनंत कृपा होती है, जो कृतज्ञ बनकर रहता है। कृतज्ञ का अर्थ है, अहसान करने वाला। दूसरों के उपकार को मानना और उपकार का बदला उपकार से चुकाना और कृतघ्न व्यक्ति वह है जो अहसानफरामोश है। ईश्वर ने आपको जो कुछ दिया है उसका अहसान मानिए, उसके गुण गाइए। संसार में आपके लिए जिसने अच्छा किया है, उसके लिए अच्छा सोचिए। *सुधांशुजी महाराज*

सेवा भाव अति दुष्कर काम है। योगीजन भी इसे असंभव मानते हैं। जिस कार्य को योगीजन भी दुष्कर समझें, उसी कार्य को यदि कोई मानव करे तो जरा कल्पना करें कि उसका स्थान कितना ऊंचा है? वह कितना महान है? *शास्त्रोक्ति*

जो व्यक्ति जीवन में सफल है, हम उन्हें देखें-उनका सबकुछ व्यवस्थित नजर आएगा। सफल कंपनियों, उद्योग-धंधों का सारा कारोबार बड़े ही व्यवस्थित ढंग से होता है। वहां हर चीज आईने के समान स्पष्ट होती है, यही उनकी सफलता का रहस्य है। *अज्ञात*

अव्यवस्थित दिनचर्या सदैव हानिकारक होती है। इससे आप परजीवी हो जाते हैं और आपके गुणों को अवगुणों की चादर ढंक लेती है। फिर शुरू होता है समस्याओं का अंतहीन सिलसिला। *अज्ञात*

भूल करके आदमी सीखता तो है, पर इसका यह मतलब नहीं कि वह जीवनभर भूल ही करता रहे और कहता फिरे कि अभी वह सीख रहा है। *स्वामी विवेकानंद*

जो पुरुष धर्म, अर्थ और काम इन तीनों का समयानुसार सेवन करता है, वह इस जन्म और पर-जन्म में धर्म, अर्थ, काम के संयोग को प्राप्त होता है। *विदुर*

जब मनुष्य के सामने अनेक कार्य करने के लिए हों तो सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण स्थायी परिणाम वाले कार्य को कर्तव्य के रूप में करना स्वीकार करना चाहिए। उस काम को समाप्त करने के बाद अन्य छोटे अथवा सामान्य महत्त्व के कार्य को हाथ में लेना चाहिए। *चाणक्य*

मनुष्य जीवन में लगन बड़ी महत्त्वपूर्ण चीज है। जिसमें लगन है, वह वृद्ध भी जवान है। जिसमें लगन नहीं, वह जवान भी वृद्ध है। *प्रेमचंद*

दोस्त बनाने का ‘रॉ’ मटीरियल है मुस्कान। बिना खर्च बिना कुछ किए केवल प्रसन्नता देकर आप ढेर सारे दोस्त पा लेते हैं जो आपकी जीत के लिए आपको प्रोत्साहन रूपी रसायन देते हैं। *अज्ञात*

प्रसन्नचित्त व्यक्ति जहां कहीं भी जाता है, वहां अपना प्रभाव छोड़ आता है। वह सबको उत्साहित करने के साथ-साथ प्रेरणा देना, प्रसन्न रहना सिखाता है, ऐसा प्रसन्नचित्त व्यक्ति धूप की वह किरण है, जिसका अत्यंत सुखद प्रभाव खेतों और वनस्पतियों पर पड़ता है। *कार्लाइल*

मेरे हृदय में झूठा मद भरा है-रूप का मद, बल का मद, धन का मद, वद का मद। इस मद के कारण ही मैं किसी को कुछ नहीं समझता, अपने आपको भी भूल बैठता हूं। हे प्रभु! इतना अनुग्रह कीजिए कि मेरे हृदय से यह झूठा मद निकल जाए, ताकि मैं समझ सकूँ कि मुझमें और दूसरों में कोई अंतर नहीं है। *स्वामी गणेशदास*

आनंद ही वह वस्तु है, जो आपके पास न होने पर भी आप दूसरों को बिना किसी असुविधा के दे सकते हैं। *कारमेन सिल्वा*

धन आपका दास है, यदि आप उसका उपयोग जानते हैं, लेकिन वह तब आपका स्वामी बन जाता है, जब आप उसका उपयोग नहीं जानते। *होरेस*

मन को शांति और विवेक द्वारा संचालित होना चाहिए। मन:शांति की अवस्था में ही सच्चा नीर-क्षीर विवेक हो सकता है। निर्णयात्मक बुद्धि द्वारा संचालित व्यक्ति ही उन्नति कर सकते हैं। *श्रीराम शर्मा*

धर्म के साथ सहनशीलता सबसे ऊंची तपस्या है। सभी बुद्धों ने यही कहा है: निर्वाण सर्वोपरि है। वह विरागी नहीं जो दूसरों को कष्ट देता है और न वह तपस्वी है जो दूसरों का उत्पीड़न करता है। *जातक*

अनिश्चित मना पुरुष भी जब मन को एकाग्र करके सामना करने के लिए खड़ा होता है, तो आपत्तियों का लहराता हुआ समुद्र भी शांत होकर बैठ जाता है। *तिरुवल्लुवर*

व्यवहारकुशलता वहां रहती है, जहां अपेक्षाएं हो, अपेक्षा रहित होते ही व्यवहार शून्यता आने लगती है। योग, साधना, , जप, तप, ध्यान आपकी व्यक्तिगत चीजें हैं, समाज में आपका मूल्यांकन आपके सद्कार्यों और व्यवहार से ही आंका जाता है। *स्वर्णसूत्र*

व्यवहार सदा समझकर करना ही अच्छा है, बिना समझे नहीं। सिर का बोझ पैरों पर पड़ता है, लेकिन पैरों को इसका आभास नहीं होता। *महाकवि वृंद*

आज तक कोई व्यक्ति इसलिए सम्मानित नहीं हुआ कि उसने दुनिया से क्या लिया, लेकिन इसलिए जरूर हुआ कि उसने क्या दिया। *काल्विन कुलिज*

आप राजमार्ग न बन सकें तो पगडंडी ही बनिए। सूरज न बन सकें तो तारा ही बनिए। आकार से किसी की सफलता-असफलता का फैसला नहीं होता। आप अपनी स्वाभाविकता के अनुसार ही श्रेष्ठ बनिए। *डगलस वैलोस*

अपमानित होने वाला व्यक्ति मनुष्य नहीं कुत्ता बन जाता है, ऐसा कार्य ही न करो जिससे अपमानित होना पड़े। *श्रीधर सारंग*

मूर्ख का परित्याग कर देना ही अच्छा है, क्योंकि देखने में तो वह मनुष्य है, परंतु वास्तव में दो पैरों वाला पशु है और वाक्य रूपी शल्य से सदा भेदता रहता है, जैसे अंधे को कांटा। *चाणक्य*

अपना काम देखो, अपना निर्णय स्वयं करो। बराबर दिनचर्या बनाकर काम करो। तुम्हारा कायाकल्प हो जाएगा। बिना इसके आप बेकार हैं। *जॉर्ज इलियट*

खुशामदी आदमी इसलिए आपकी खुशामद करता है क्योंकि वह आपको अयोग्य समझता है, लेकिन आप उसके मुंह से अपनी प्रशंसा सुनकर फूले नहीं समाते। *टॉलस्टॉय*

विश्वास सफलता की एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण सीढ़ी है-स्वयं में और उसमें भी विश्वास करें, जो सारी दुनिया को चला रहा है। मैं सही कदम उठा रहा हूं, यह सफलता की दिशा में पहला कदम है। दूसरा और निर्णायक कदम उस परम सत्ता में विश्वास करने का है जो हर सही कदम का पुरस्कार देती है। आवश्यकता सिर्फ पहला सही कदम उठाने की है। *स्वामी विश्वानंद*

जीवन किसी को स्थायी संपत्ति के रूप में नहीं मिला। वह तो थोड़े समय के लिए सिर्फ प्रयोग के लिए मिला है। *लुक्रीटस*

जीवन को सहजतम भाव से लेना मुक्ति का पहला चरण है। आप स्वयं को महत्त्वाकांक्षाओं से जितना अधिक बांधोगे, मुक्ति की मंजिल उतनी ही दूर होती जाएगी। *ओशो*

life motivational quotes in hindi मोटिवेशनल कोट्स इन हिंदी फॉर लाइफ

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हर व्यक्ति में दिव्यता का अंश है, कुछ विशेषता है और शिक्षा का यही कार्य है कि इसको खोज निकाला जाए, विकसित किया जाए और प्रयोग में लाया जाए। *महर्षि अरविंद*

मनुष्य को कर्म का अधिकार इसलिए दिया गया है कि वह प्रत्येक वांछित वस्तु अपने पुरुषार्थ द्वारा प्राप्त करे, किंतु मनुष्य हर वस्तु परमात्मा से मांगता है। यह कर्म और परमात्मा दोनों का अपमान है। *केशवानंद*

विचारों से तो सभी आदर्शवादी होते हैं। योग्य-अयोग्य का ज्ञान या पुण्य- पाप की अनुभूति तो मूर्ख और पापी को भी होती है,किंतु व्यावहारिक जीवन में हम उसे भूल जाते हैं। धर्म को जानते हुए भी उसमें प्रवृत्त नहीं होते और अधर्म को जानते हुए भी उससे निवृत्त नहीं होते। *श्रीराम शर्मा*

भलाई और उदारता, संयम और धैर्य, निस्वार्थता और बलिदान, सहिष्णुता और साहस ऐसी कौन-सी चीज है जो प्रेम में नहीं है। पवित्रतम् और दिव्यतम गुणों में ऐसी कौन-सा तत्त्व है जो प्रेम में नहीं है। *रैहना तय्यब*

इतना ऊंचा उड़ने की कोशिश मत करो कि अंत में थककर पाताल में गिरना पड़े। उतना ही उड़ो, जितनी तुम्हारे अंदर शक्ति है। *मोस*

सफलता और असफलता की गाथाओं में विविध प्रकार के तत्त्वों का योगदान होता है। परंतु प्रत्येक मामले में एक सामान्य कारक भी उपस्थित रहता है और वह है इच्छाशक्ति का तत्त्व। किसी व्यक्ति के जीवन में सफलता का परिमाण उसकी इच्छाशक्ति के विकास के अनुपात में ही होता है। *स्वामी विदेहात्मानंद*

हमें इसकी चिंता नहीं कि मुहम्मद अच्छे थे या बुद्ध? इससे क्या मेरी अच्छाई या बुराई में परिवर्तन हो सकता है? आओ हम अपने लिए और अपनी जिम्मेदारी पर अच्छे बनें। *स्वामी विवेकानंद*

संसार में प्रत्येक कार्य में विजय प्राप्त करने के लिए एकाग्रचित्त होना आवश्यक है। जो लोग चित्त को चारों ओर बिखेरकर काम करते हैं, उन्हें कभी सफलता नहीं मिलती। *मार्ले*

कर्मशील लोग शायद ही कभी उदास रहते हों, कर्मशीलता और उदासी साथ-साथ नहीं रहती। *बोवी*

विचार चाहे पुराना हो और बहुत बार पेश किया जा चुका हो, लेकिन आखिरकार वह उसका है जो उसे बेहतरीन तरीके से पेश करे। *लावेल*

चरित्र परिवर्तित नहीं होता, विचार परिवर्तित होते हैं, किंतु चरित्र विकसित किया जाता है। *डिजरायली*

जब विचार चंचल होता है तो वह अस्त-व्यस्त और शक्तिहीन हो जाता है, इसलिए विचारों की स्थिरता ही व्यक्ति को सम्पूर्ण बनाती है। *श्री मां*

सकारात्मक विचार वाला व्यक्ति कहता है-‘मैं कर सकता हूं। नकारात्मक विचार वाला कहता है-‘मैं नहीं कर सकता मैं यह कैसे कर सकता हूं।’ आप स्वयं अपना परीक्षण करें कि आप किस श्रेणी के हैं। *अज्ञात*

ईश्वर ने हमें दो आंखें और दो कान दिए हैं, परंतु जिह्वा सिर्फ एक ही है, ऐसा इसलिए है कि हम देखें अधिक, सुनें अधिक किंतु बोलें कम। *सुकरात*

थोड़ी-सी सामान्य बुद्धि, थोड़ा-सा शिष्ट हास्य और थोड़ी-सी सहनशीलता-और आप नहीं जानते कि इस ग्रह पर आप अपने आपको कितना सुखी बना सकते हैं। *सामरसेट मॉग”

यदि आप अपना व्यक्तित्व प्रभावशाली बनाना चाहते हैं, यदि अपने व्यक्तित्व में चुम्बकीय गुण लाना चाहते हैं तो आपको आज और इसी समय से अपने विचारों एवं भावनाओं को बदलना होगा। *अज्ञात*

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