Tantya Bheel ki Jayanti or Shahid Diwas | टंट्या भील जयंती और शहीद दिवस

Tantya Bheel ki Jayanti or Shahid Diwas | टंट्या भील जयंती और शहीद दिवस
Tantya Bheel ki Jayanti or Shahid Diwas | टंट्या भील जयंती और शहीद दिवस
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1 टंट्या भील का इतिहास | Tantya Bheel की जन्म से लेकर मृत्यु तक की कहानी

टंट्या भील का इतिहास | Tantya Bheel की जन्म से लेकर मृत्यु तक की कहानी

टंट्या भील (Tantya Bheel) – देश को आजादी दिलाने में बहुत सारे क्रांतिकारियों ने अपनी जान न्योछावर कर दिए जिनमें से कुछ क्रांतिकारियों को तो हम बहुत अच्छे से जानते हैं लेकिन कुछ क्रांतिकारियों का नाम बस केवल इतिहास तक ही सीमित रह गया। उन्हीं में से एक है टंट्या भील (Tantya Bheel)

यह भी अन्य क्रांतिकार्यों की तरह ही भारत माता के आजादी के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। इन्होंने अंग्रेजों के शोषण और उनके विदेशी हस्तक्षेप के खिलाफ आवाज उठाई। अंग्रेजों को लूट कर गरीबों की भूख मिटाया करते थे जिसके कारण ये गरीबों के मसीहा बन गए थे। आज हम इतिहास के पन्नों को पलटेंगे और टंट्या भील (Tantya Bheel) के जीवन के बारे में जानेंगे।

टंट्या भील का इतिहास | Tantya Bheel की जन्म से लेकर मृत्यु तक की कहानी
टंट्या भील का इतिहास | Tantya Bheel की जन्म से लेकर मृत्यु तक की कहानी

टंट्या भील (Tantya Bheel) “इंडियन रोबिन हुड” (Robin Hood of India)

20 अक्टूबर 1842 को मध्य प्रदेश के खंडवा में एक भील परिवार में एक वीर योद्धा का जन्म हुआ। वो कोई और नहीं बल्कि “टंट्या भील (Tantya Bheel)” थे। टंट्या भील का असली नाम ‘टण्ड्रा भील’ था टंट्या भील के पिता का नाम “भाऊसिंह भील” था। इनके अदम्य साहस और वीरता को देख अंग्रेजों ने इन्हें “इंडियन रोबिन हुड” का नाम दिया

टंट्या भील (Tantya Bheel) तात्या टोपे, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई

आदिवासियों के नायक और देश प्रेम की भावना से प्रभावित होकर “तात्या टोपे” ने इन्हें “गोरिल्ला युद्ध” में शामिल होने का मौका दिया। टंट्या भील को अंग्रेजो खिलाफ लड़ने की प्रेरणा “झांसी की रानी लक्ष्मीबाई” से मिली। वे गरीबों के ऊपर अंग्रेजों के अन्याय देख उसके खिलाफ आवाज उठाई।

गरीबों की मदद करने के लिए अंग्रेजों को लूटते थे और धन को हड़प कर गरीबों में बांट देते थे जिसके कारण ही गरीबों के और “आदिवासियों के वे मसीहा” कहलाए। इसीलिए आज भी छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के कई आदिवासी घरों में टंट्या भील को भगवान की तरह संबोधित किया जाता है और उनकी की पूजा की जाती है।

टंट्या भील (Tantya Bheel) को मामा कह कर संबोधित करना

उन्होंने न केवल गरीबों को अंग्रेजों के अत्याचार से मुक्त कराया बल्कि हमेशा से ही गरीब अमीर का भेदभाव हटाने का भी प्रयास किया इसीलिए आदिवासी समुदाय के बीच इन्हें “मामा” कह कर संबोधित किया जाता है और आज भी भील जनजाति के लोग इन्हें “टंट्या मामा” कहते हैं। टंट्या भील (Tantya Bheel) अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह बहुत कम उम्र में ही शुरू कर दिये थे। इनके नाम का जैसा मतलब था वैसा ही इनका स्वभाव भी था।

टंट्या भील (Tantya Bheel) की गोरिल्ला युद्ध नीति

1757 में प्लासी का युद्ध हुआ उसके बाद से आदिवासियों ने अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह शुरू कर दिया और उनका संघर्ष बीसवीं सदी की शुरुआत तक चलता रहा। टंट्या भील (Tantya Bheel ने 1857 से लेकर 1889 तक अंग्रेजों के नाक में दम कर दिया था। अंग्रेजों का विद्रोह करने के लिए “गोरिल्ला युद्ध नीति” का इस्तेमाल करते थे जिसमें अंग्रेजों पर हमला करके किसी पंछी की तरह गायब हो जाते थे।

टंट्या भील (Tantya Bheel) की चालाकी और बुद्धिमानी

टंट्या भील (Tantya Bheel) बचपन से बहुत चालाक और बुद्धिमान थे। अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने के लिए 1700 गांव में एक साथ सभा करते थे। वे इतने शातिर थे कि अंग्रेजों के ऊपर हमला करके इस तरीके से गायब हो जाते थे कि अंग्रेजों के 2000 सैनिक भी उन्हें खोज नहीं पाती थी। वह जानवरों के भाषा समझने में भी माहिर थे।

टंट्या भील (Tantya Bheel) को फांसी

लेकिन कहते हैं ना कि कोई दुश्मन तब तक हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता जब तक कोई अपना ही बदल ना जाए। क्योंकि कुछ लोगों की मिलीभगत के कारण टंट्या भील (Tantya Bheel) को आखिरकार अंग्रेजों ने पकड़ ही लिया और 4 दिसंबर 1889 को उन्हें फांसी पर लटका दिया गया।

वह दिन देश के लिए बहुत ही शोक का था क्योंकि उस दिन इस धरती से एक महान और वीर क्रांतिकारी की मृत्यु हो गई। फांसी देने के बाद अंग्रेजों ने टंट्या भील के शव को इंदौर के निकट खंडवा रेल मार्ग पर स्थित पातालपानी रेलवे स्टेशन के पास फेंक दिया। आज उस जगह पर टंट्या मामा की समाधि बनी हुई है।

टंट्या भील (Tantya Bheel) को सलामी

इस क्रांतिकारी की वीरता और अदम्य साहस के लिए उन्हें सम्मान देने के लिए आज भी पातालपानी रेलवे स्टेशन पर जो भी ट्रेन आती है, रेल चालक कुछ क्षण के लिए ट्रेन को रोक टंट्या भील (Tantya Bheel) को सलामी देते हैं। यहां तक कि टंट्या भील के जीवन के आधारित एक फिल्म भी बन चुकी है। जो लोग टंट्या भील के बारे में अच्छी तरीके से जानना चाहते हैं और अंग्रेजों के प्रति उनकी जो वीरता और साहस उन्होंने दिखाया था यदि उसे देखना चाहते हैं तो इस फिल्म को जरूर देखें।

FAQ ON टंट्या भील (Tantya Bheel)

20 अक्टूबर 1842 को मध्य प्रदेश के खंडवा में एक भील परिवार में इस वीर योद्धा का जन्म हुआ था।

खंडवा (मध्य प्रदेश) में एक भील परिवार में हुआ था।

टंट्या भील को 4 दिसंबर 1889 को फांसी हुई थी।

टंट्या भील की जयंती 26 जनवरी को मनाई जाती है।

टंट्या भील का शहीद दिवस 4 दिसंबर को मनाया जाता है।

टंट्या भील के पिता का नाम भाऊसिंह भील है।

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