200 Motivational Chanakya Quotes in Hindi | चाणक्य नीति के विचार | & Thoughts

200 Motivational Chanakya Quotes in Hindi | चाणक्य नीति के विचार | & Thoughts
200 Motivational Chanakya Quotes in Hindi | चाणक्य नीति के विचार | & Thoughts

चाणक्य नीतियाँ – Chanakya Niti in Hindi – All Chanakya Quotes in Hindi

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Chanakya Biography (चाणक्य की जीवनी)
नाम – चाणक्य, विष्णुगुप्त, कौटिल्य
चाणक्य का जन्म – 350 ईसा पूर्व
चाणक्य के पिता का नाम – ऋषि कनक
चाणक्य की माता का नाम – चनेश्वरी
चाणक्य के गुरु का नाम – चणक
चाणक्य की पत्नी का नाम – यशोमती
चाणक्य की मृत्यु – 275 ईसा पूर्व, पाटलिपुत्र
चाणक्य का प्रमुख शास्त्र – अर्थशास्त्र
शिक्षा – समाजशास्त्र, राजनीति, अर्थशास्त्र, दर्शन, आदि का अध्ययन।

200 Motivational Chanakya Quotes in Hindi | चाणक्य नीति के विचार | & Thoughts
Motivational Chanakya Quotes in Hindi | चाणक्य नीति के विचार | & Thoughts

चाणक्य एक कुशल, चतुर, कुटनीतिज्ञ और महान चरित्र वाले व्यक्ति थे इसके साथ ही वे एक महान शिक्षा विशारद भी थे। अपने विचारों, अवधारणाओं और महान नीतियों से वे बहुत लोकप्रिय थे। आचार्य चाणक्य विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। एक बेहद बुद्धिमान, कुटनीतिज्ञ और चतुर व्यक्ति थे। उन्होंनें अपनी चतुराई से कुछ मनोरंजक युद्ध नीतियों को तैयार किया और वे बाद में उन्होनें मगध के नंदा वंश का विनाश किया।

Chanakya quotes in hindi (chanakya niti for motivation) चाणक्य कोट्स हिंदी

कल्पवृक्ष अभिलाषाओं की पूर्ति करता है, लेकिन लकड़ी ही तो है। सुमेरू पर्वत धन का भण्डार है, लेकिन है तो पत्थरों का ढेर। चिन्तामणि चिन्ता-हरण करती है, लेकिन वह भी पत्थर है। सूर्य की किरणें प्रकाशवान हैं, लेकिन प्रचण्ड हैं। चन्द्रमा शीतलता और प्रकाश प्रदान करता है, लेकिन वह क्षय रोग से पीड़ित है।

समुद्र खारे जल वाला और कामदेव अशरीर है। बलि राक्षस कुल से संबद्ध है और सभी इच्छाओं की पूर्ति करने वाली कामधेनु एक पशु ही तो है। हे ईश्वर, इनमें से कोई भी आपकी तरह महान नहीं। किसी को भी आपके तुल्य नहीं रखा जा सकता। अर्थात् जगत् में ईश्वर सर्वोपरि है।

स्वाभाविक दोष वे दोष हैं, जिन्हें कहीं बाहर से ग्रहण नहीं करना पड़ता, बल्कि वे स्वतः ही जन्म से आविर्भूत होते हैं। पक्षी स्वभाव और जन्म से ही उड़ने में निपुण होते हैं। अग्नि का स्वभाव जलाना है, जल शीतलता प्रदान करता है।

यह आवश्यक नहीं कि प्रत्येक स्त्री के स्वभाव में उपर्युक्त दोष उपलब्ध हों। भोजन में योग्य स्वादिष्ट व्यंजन और उन्हें ग्रहण करने का सामर्थ्य, रूपवान स्त्री और भोग-विलास की शक्ति, विपुल धन और दानशीलता, ऐसे गुण घोर तप अथवा पूर्व जन्म के सुफलों के परिणामस्वरूप ही प्राप्त हो सकते हैं।

विषहीन सर्प को भी रक्षा के लिए फन फैलाना ही पड़ता है।

संसार रूपी इस वृक्ष के अमृत के समान दो फल हैं- सुन्दर बोलना तथा सज्जनों की संगति करना।

Chanakya Motivational Quotes
Chanakya Motivational Quotes

जिस पिता का पुत्र आज्ञाकारी हो, पत्नी अनुकूल आचरण वाली और पतिव्रता हो, जो मेहनत से प्राप्त धन से ही संतुष्ट हो, ऐसा व्यक्ति इस संसार में ही स्वर्ग-सा सुख अनुभव करता है। अर्थात् संतोषी सदा सुखी।

जो पुत्र माता-पिता का आज्ञाकारी और भक्त हो, वही पुत्र कहलाने का अधिकारी है।

जो व्यक्ति अपनी सन्तान का पालन-पोषण करता हो, उनके सुख-दु:ख का ख्याल रखता हो, वही वास्तविक अर्थों में पिता है।

सच्चा मित्र वही हो सकता है जो विश्वसनीय हो।

पति को सच्चा सुख देने वाली स्त्री ही, सही अर्थों में पत्नी है।

ऊपर से सुन्दर दिखाई पड़ने वाले फल बहुधा मीठे नहीं होते। इसी प्रकार मुंह पर मीठी-मीठी बातें करने वाले लोग भी घातक, सिद्ध हो सकते हैं। जो लोग सामने हमारी प्रशंसा करें, पीठ पीछे निन्दा-ऐसे सभी लोगों का परित्याग कर देना चाहिए, क्योंकि वे उस विष-कुम्भ के समान हैं, जिसके ऊपर तो दूध भरा होता है किन्तु अन्दर विष होता है। ऐसे लोगों से सावधान रहना चाहिये।

निकृष्ट मित्र पर तो विश्वास कदापि नहीं ही करना चाहिए अपितु अच्छे मित्र पर भी पूर्ण विश्वास न किया जाये। चाणक्य इस सम्बन्ध में तर्क देते हैं कि यदि जब कभी अच्छा मित्र शत्रु बन जाता है तो हमारे सारे गोपनीय विचारों को प्रकट कर हमें हानि पहुंचा सकता है।

यदि हम किसी विशेष कार्य अथवा योजना पर चिन्तन-मनन कर रहे हैं तो यह आवश्यक है कि उसके कार्यान्वित होने तक किसी अन्य के सामने उसे प्रकट न करें। ऐसा करने पर योजना के सफल होने में संदेह उत्पन्न होने की संभावना बनी रहती है।

अज्ञान सदैव कष्टप्रद होता है। अज्ञानी हर जगह उपहास का पात्र बनता है।

सर्वाधिक कष्टप्रद है- पराश्रित होकर जीना। दूसरों के सहारे जीने वाला व्यक्ति पशु-तुल्य हो जाता है, उसे जहां हांका जाता है, वहीं को वह जाता है अन्यथा दण्ड का भोगी होना होगा। अतएव् अपना सहारा स्वयं ही बनना श्रेयस्कर होगा।

chankya niti images in hindi चाणक्य स्टेटस और अनमोल वचन फोटो

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संसार में कई तरह की प्रवृत्ति के लोग वास करते हैं, हमें उनमें से सज्जन पुरुषों से ही सम्पर्क बनाना चाहिए, हमें सफलता सज्जन-पुरुषों की संगति से ही प्राप्त हो सकती है।

ज्ञानशील व्यक्तियों के लिए यह आवश्यक है कि वे अपनी सन्तानों को चरित्र-निर्माण के कार्यों में लगाएं। उनके गुणों में वृद्धि के लिए अच्छी शिक्षा-दीक्षा का प्रबन्ध करें, क्योंकि व्यक्ति के गुण ही विश्व में पूज्यनीय होते हैं ज्ञानी प्राणी ज्ञान के प्रकाश से अज्ञान रूपी पशु का नाश कर देता है। जब कभी हम किसी मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, चर्च अथवा अन्य किसी श्रद्धेय स्थल के समक्ष से गुजरते हैं तो मन ही मन वहां श्रद्धान्वत हो उठते हैं, क्योंकि उस स्थान के प्रति हमारे मन में आस्था है। इसी प्रकार गुणी व्यक्ति भी आस्था के प्रतीक बन सभी के लिए पूज्यनीय बन जाते हैं।

जो माता-पिता अपनी सन्तान को अच्छी शिक्षा नहीं दिलवाते, वे उनके शत्रु हैं, क्योंकि अज्ञानी और बुद्धिहीन लोग सब जगह उपहास का पात्र बनते हैं। ऐसे लोग जब किसी सभा में गूगों की तरह मुंह बन्द किये बैठे रहते हैं तो हंसों की सभा में कौओं की तरह प्रतीत होते हैं।

गुण भी योग्य विवेकशील व्यक्ति के पास जाकर ही सुन्दर लगता है, क्योंकि सोने में जड़े जाने पर ही रत्न सुन्दर लगता है। से क्या लाभ?

गुणी मनुष्य भी उचित आसरा नहीं मिलने पर खिन्न हो जाता है, क्योंकि मोती का कोई मोल नहीं जब तक कि उसे धारण नहीं किया जाता। गुणों से ही व्यक्ति बड़ा बनता है, न कि किसी ऊंचे स्थान पर बैठ जाने से। राजमहल के शीर्ष पर बैठ जाने पर भी कौवा हंस नहीं बनता। दूसरे व्यक्ति यदि गुणहीन व्यक्ति की भी प्रशंसा करें, तो वह बड़ा हो जाता है।

अपनी प्रशंसा खुद करने पर तो इन्द्र भी छोटा हो जाता है। जिसके पास स्वयं अपनी बुद्धि नहीं, उसके लिए शास्त्र क्या कर सकते हैं! आंखों के अंधे के लिए दर्पण क्या करेगा। अर्थात जो जन्म से ही मूर्ख हो; जिसके पास अपनी बुद्धि न हो, शास्त्र उसका क्या भला कर सकते हैं। वह शास्त्रों से कुछ नहीं सीख सकता क्योंकि शास्त्रों को समझने के लिए भी बुद्धि चाहिए। भला एक नेत्रहीन को शीशा दिखाने।

मूर्ख मनुष्य चाहे कितने भी धर्म शास्त्र पढ़ लें, वे रस से भरे उस पात्र की तरह होते हैं जिसमें रस तो होता है पर वह पात्र उसका स्वाद नहीं ले पाता। ठीक उसी प्रकार ही मूर्ख मनुष्य अपनी आत्मा को नहीं पाता।

मधुर वचन, दान देने की प्रवृत्ति, देवताओं की पूजा-अर्चना तथा सत्पुरुषों को संतुष्ट रखना-इन लक्षणों वाला व्यक्ति, इस पृथ्वीलोक में स्वर्गलोक से अवतरित की कोई आत्मा होता है।

युग का अन्त होने पर भले ही सुमेरू पर्वत अपने स्थान से हट जाये और कल्प का अन्त होने पर भले ही सातों समुद्र विचलित हो जाएं, किन्तु सज्जन अपने मार्ग से विचलित नहीं होते।

योग्य इंसान के पास आकर अयोग्य वस्तु भी का भी आकृषण बढ़ जाता है, किन्तु अयोग्य के पास जाने पर योग्य काम की वस्तु भी मूल्य घट जाता है। महादेव के पास आने पर विष भी गले का आभूषण बन गया, किन्तु राहु को अमृत मिलने पर भी मृत्यु को गले लगाना पड़ा।

दुष्टों से दुष्टता करने में कोई पाप नहीं है।

दुष्टों के पुरे शरीर में जहर होता है।

आचार्य चाणक्य के अनमोल विचार हिंदी में Chanakya Quotes in Hindi

आचार्य चाणक्य के अनमोल विचार हिंदी में Chanakya Quotes in Hindi
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जिस प्रकार रेत में गिर फूलों की सुगन्ध रेत धारण कर लेती है, फूल रेत की गन्ध को नहीं अपनाते। ठीक उसी प्रकार सत्पुरुषों की संगत से दुष्टों में भी साधुता आ जाती है, परन्तु दुष्टों की संगति से सत्पुरुषों में दुष्टता नहीं आती।

बादल समुद्र से जल लेता है और पृथ्वी पर वर्षा करता है। इसी वर्षा से पृथ्वी में मनुष्य, पशु-पक्षी, वृक्षादि जीवित रहते हैं। फिर यही जल कई गुना होकर नदियों में बहता हुआ समुद्र में ही चला जाता है।

धनी लोगों को भी किसी योग्य व्यक्ति को ही कोई कारोबार करने के लिए धन से सहायता करनी चाहिए। इससे वह व्यक्ति कई लोगों का भला करता है और सहायता करने वाले को भी लाभ होता है।

उज्ज्वल कर्म करने वाला मनुष्य क्षण भर भी जिए तो अच्छा है, किन्तु दोनों लोकों के विरुद्ध कार्य करने वाला मनुष्य एक पल भी जिए तो व्यर्थ होगा।

धर्म में तत्परता, मृदु-वाणी, दानशीलता, मैत्रीभाव, गुरू-भक्ति, गम्भीरता, सद्-व्यवहार, परोपकारभावी, शास्त्रज्ञ, सुन्दर-सुरुचिपूर्ण और हंसमुख स्वभाव, ये गुण केवल सद्-पुरुषों में ही देखने को मिल सकते हैं।

जिसमें गुण और धर्म हैं, वही मनुष्य जीवित माना जाता है। गुण और धर्म से रहित मनुष्य का जीवन व्यर्थ है।

दुष्ट और सांप में सांप अच्छा है क्योंकि सांप तो एक ही बार डसता है किन्तु दुष्ट तो पग-पग पर डसता रहता है।

मनुष्य को अपने आहार की अपेक्षा धर्म-संग्रह पर अधिक चिन्तन-मनन करना चाहिए, क्योंकि पेट भरने का प्रबन्ध तो जन्म के साथ ही ईश्वर कर देते हैं। दूसरे शब्दों में पेट तो पशु भी भर लेते हैं लेकिन धर्म का संग्रह मनुष्य के ही भाग्य में है। धर्म-संग्रह से ही परलोक सुधरता है।

दुष्ट व्यक्ति दूसरे की उन्नति को देख जलता है। वह स्वयं उन्नति नहीं कर सकता, इसलिए निन्दा करने लगता है।

हाथी से एक हजार हाथ दूर, घोड़े से सौ हाथ दूर और सींग वाले पशु से दस हाथ दूर चलना चाहिए लेकिन दुष्ट से बचाव के लिए वह स्थान ही छोड़ देना चाहिए, जहां दुष्ट रह रहा है।

Chanakya Quotes Hindi Me
Chanakya Quotes Hindi Me

दुष्टों तथा कांटों का दो ही प्रकार का उपचार है- जूतों से कुचल देना या दूर से ही उन्हें देख मार्ग बदल लेना।

अधर्मी का साथ छोड़ दो, सत्पुरुषों का साथ करो, रात-दिन अच्छे कार्य करो तथा सदा परमेश्वर को याद करो।

स्त्रियों में आहार दुगुना लज्जा चौगुनी, साहस छ: गुना तथा कामोत्तेजना आठ गुनी होती है।

chankya niti quotes चाणक्य विचार इन हिंदी

chankya niti quotes चाणक्य विचार इन हिंदी
chankya niti quotes चाणक्य विचार इन हिंदी

दौलत से धर्म की, योग से विद्या की, मृदुता से राजा की तथा समझदार स्त्री-से घर की रक्षा होती है।

जिन घरों में विद्वानों, ब्राह्मणों का आदर नहीं होता, वेदों शास्त्रों आदि का अध्ययन, पाठ अथवा कथा नहीं होती तथा यज्ञ नहीं किए जाते, ऐसे घरों को श्मशान के समान समझना चाहिए।कट जाने पर भी चन्दन सुगन्ध नही त्यागता, बूढ़ा हो जाने पर भी हाथी अपनी लीलाओं को नहीं छोड़ता। कोल्हू में पिर जाने के बाद भी गन्ना अपनी मिठास नहीं छोड़ता। इसी प्रकार गरीब हो जाने पर भी कुलीन अपने शील गुणों को नहीं छोड़ता।

जिस प्रकार तपाने, पीटने, काटने और घिसने से सोने का परीक्षण होता है। उसी प्रकार त्याग, शील, गुण एवं कर्मों से मनुष्य की परीक्षा होती है।

दान से ही हाथों की सुन्दरता है, न कि सोने के कंगन पहनने से, काया स्नान से शुद्ध होती है न कि ईत्र या चन्दन लगाने से, तृप्ति मन से होती है, न कि भोजन से, मोक्ष अंतर्ज्ञान से मिलता है न कि श्रृंगार और सौंदर्य से।

जो व्यक्ति उत्सव में, दु:ख में अकाल पड़ने पर, संकट में, राजदरबार में तथा श्मशान साथ देता है, वहीं सच्चा हितैषी है।

भोजन का निमन्त्रण ब्राह्मण के लिए, हर रोज़ चरने के लिए हरी-हरी घास गायों के लिए और पति का हर रोज़ उत्साह से भरे रहना पत्नी के लिए उत्सव के समान है।

भोज्य पदार्थ, भोजन शक्ति, रति शक्ति, सुन्दर स्त्री, वैभव तथा दान-शक्ति ये सुख किसी अल्प तपस्या का फल नहीं होते। पूर्व जन्म में अखण्ड तपस्या से ही ऐसा सौभाग्य मिलता है।

जो व्यक्ति पर-स्त्रियों को मां के समान, पराए धन को मिट्टी के समान और सभी लोगों को अपनी ही तरह देखता है, वही सच्चा संत-सज्जन पुरुष है।

Chanakya Niti Quotation
Chanakya Niti Quotation

जिसका चित्त स्थिर नहीं होता, उस व्यक्ति को न तो लोगों के बीच में सुख मिलता है और न वन में ही। लोगों के बीच में रहने पर उसे उनका साथ खटता है तथा वन में अकेलापन पीड़ा देता है।

भूमि से जल निकालने के लिए जमीन को खोदा जाता है। इसके लिए व्यक्ति को परिश्रम करना पड़ता है। इसी प्रकार गुरू से विद्या प्राप्त करने में भी परिश्रम और सेवा करनी पड़ती है।

सत्पुरुषों के दर्शन करने से पुण्य मिलता होता है। सत्पुरुषों तीर्थों के समान होते हैं। तीर्थों का फल तो कुछ समय बाद मिलता है, किन्तु सत्पुरुषों का सत्संग तुरन्त फल देता है।

जैसे फल में गन्ध, तिलों में तेल, काष्ठ में अग्नि, दुग्ध में घी, गन्ने में गुड़ है, उसी तरह शरीर में परमात्मा है। इसे पहचानना चाहिए।

ईश्वर न लकड़ी में है, न रेत में, न प्रतिमा में। वह केवल मनोभाव में है। अतः भावना ही प्रमुख्य है।

लक्ष्मी चंचल है, प्राण, जीवन, शरीर सब कुछ चंचल और नाशवान हैं। संसार में केवल धर्म ही निश्चल है।

Chanakya Quotes in Hindi (Chanakya Niti Quotes for Success in Life)

Chanakya Quotes in Hindi (Chanakya Niti Quotes for Success in Life)
Chanakya Quotes in Hindi (Chanakya Niti Quotes for Success in Life)

गरिबी, रोग, कष्ट, बन्धन और एयाशी सभी मनुष्य के अपराध रूपी पैड़ के फल हैं।

कामदेव मनुष्य का सबसे बड़ा रोग है। अज्ञान या मोह सबसे बड़ा शत्रु है। क्रोध मनुष्य को जला देने वाली भंयकर अग्नि है तथा आत्मज्ञान ही परम सुख है।

ईश्वर का ज्ञान हो जाने पर शरीर का अभिमान गल जाता है। तब चित जहां भी जाता है, वहीं ईश्वर में लीन जाता है।

धार्मिक कथाओं को सुनने पर, श्मशान में तथा रोगियों को देख व्यक्ति की बुद्धि को जो वैराग्य हो जाता है, यदि ऐसा वैराग्य सदा बना रहे तो भला कौन संसार के इन झूठे बन्धनों से मुक्त नहीं होगा।

जिसका हृदय सभी जीवों के लिए दया से वशीभूत हो जाता है, उसे ज्ञान, मोक्ष, जटा, मुंडन, भस्म-लेपन आदि से क्या लेना।

जिस प्रकार अकेला चन्द्रमा रात की शोभा बढ़ा देता है, ठीक उसी प्रकार एक ही विद्वान-सज्जन पुत्र कुल को निहाल कर देता है।

उस गाय से क्या लाभ, जो न तो दूध देती है और न गाभिन होती है। इसी प्रकार उस पुत्र के जन्म से क्या लाभ, जो न विद्वान हो और न ईश्वर का भक्त हो।

रूढ़ी पत्नी, लुप्त सम्पत्ति और हाथ से निकली भूमि वापस मिल सकती है लेकिन मानव शरीर पुन: नहीं मिल सकता, अत: दान-धर्म कर हमें अपना जन्म सफल बनाना चाहिए।

दूसरों का सहारा लेने पर व्यक्ति का स्वयं का अस्तित्व गौण हो जाता है, जिस प्रकार सूर्योदय होने पर चन्द्रमा का प्रकाश चमक खो बैठता है। अतः महान वही है जो अपने बल पर खड़ा है।

chanakya quotes on relationship
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संग्रहित धन का व्यय होते रहने से ही उसमें निरंतर वृद्धि संभव है। जैसे तालाब का पानी एक ही जगह पड़ा रहने से दूषित हो जाता है, किसी के काम का नहीं रहता- उसी प्रकार यदि धन का सद ठपयोग न हो तो वह किसी के काम का नहीं रहता। अतः हमें संग्रह के साथ-साथ, दान-धर्म करते रहना चाहिए।

पानी की एक-एक बूंद गिरने से घड़ा भर जाता है। एक-एक बूंद मिलकर नदी बनती है। धीरे-धीरे जोड़ने से व्यक्ति धनवान बन सकता है। इसी प्रकार धीरे-धीरे अभ्यास करने से हर विद्या आ जाती है। धर्म-कर्म करते रहने पर धर्म का भी संग्रह संभव है।

दौलत महत्वपूर्ण है। जिसके पास दौलत है, सब उसके अपने हैं। दौलतमंद के लिए बुरे कर्म भी अच्छे हो जाते हैं।

जिन घरों में साधुओं को मान-सम्मान, दान-दक्षिण प्रदान न की जाती हो, जहां वेदों का पाठ न होता हो, जहां हवनादि पुनीत कर्म न हों, ऐसे घर को श्मशान-भूमि ही समझना चाहिए, अर्थात ऐसा घर मुर्दो का निवास होता है। स्पष्ट है कि सद्गृहस्थ को समय-समय पर पूजा-अर्चना, दान-दक्षिणा, ब्राह्मण-भोज आदि का आयोजन करते रहना चाहिए। इसी में गृहस्थ जीवन की सर्वोच्चता है।

अग्नि- ब्राह्मण, स्त्री-पुरुष, स्वामी-सेवक और हल-बैल के बीच से नहीं निकलना चाहिए। ऐसा करने पर हानि होना निश्चित है।

कोयल का रूप उसका स्वर है। पतिव्रता होना ही स्त्रियों की सुन्दरता है। कुरूप लोगों की विद्या ही उनका रूप है तथा तपस्यिों का रूप क्षमा करना है।

सभी औषधियों में अमृत प्रधान है। सभी सुखों में भोजन प्रधान है। सभी इन्द्रियों में आंखें मुख्य हैं। सभी अंगों में सिर महत्वपूर्ण है।

chanakya quotes on success

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यह कहा जाता है कि संगति का प्रभाव अवश्य पड़ता है, लेकिन संत-सज्जन पुरुषों पर दुष्टों की संगति का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता। जिस प्रकार मिट्टी तो फूल की गन्ध ग्रहण कर लेती है, लेकिन फूल मिट्टी की गन्ध नहीं स्वीकार करता। ठीक उसी प्रकार सज्जन पुरुषों की संगति में दुर्जन तो कभी सुधर भी सकते हैं, लेकिन सज्जन पुरुषों पर दुष्टता का रंच-मात्र भी प्रभाव नहीं पड़ता। जैसे चन्दन के वृक्ष पर सांपों के लिपटे रहने पर भी चन्दन ज़हरीला नहीं होता।

आचरण से मनुष्य के कुल का पता चलता है। बोली से राष्ट्र का पता लगता है। आदर-सत्कार से प्रेम का तथा तन से मनुष्य के आहार का पता लगता है।

जिस शहर में विद्वान, बुद्धिमान, ज्ञानी पुरुष नहीं रहते, जहां के लोग दान करना नहीं जानते, जहां अच्छे काम करने में कोई चतुर न हो, किन्तु लूट-खसोट, बुरे चाल-चलन में सभी एक से बढ़कर एक हों। ऐसी जगह को गन्दगी का ढेर ही समझना चाहिए और वहां के लोगों को गन्दगी के कीड़े।

मनुष्य रूप, यौवन और मदिरा में खोकर अपने आप को ही भूल जाता है, लेकिन जब उसे होश आता है तो नरक का द्वार उसके सामने होता है। अर्थात शराब और सुंदरी का सुख मनुष्य को नरक के अलावा कुछ नहीं दे सकता। इससे बचना ही श्रेष्ठ है।

ईश्वर की महिमा की थाह कोई नहीं पा सकता। वह पल भर में राजा को रंक और रंक को राजा बना सकता है। धनी को निर्धन और निर्धन को धनवान करना उसके लिए सहज है। अतः हमें उससे डरना चाहिए। चिंतन सदैव अकेले में किया जाए, ताकि विचार भंग होने की संभावना न रहे। पढ़ाई में दो, गायन में तीन, यात्रा में चार और खेती में पांच व्यक्तियों का साथ उत्तम माना गया है। इसी प्रकार युद्ध में अधिक संख्याबल का महत्व बढ़ जाता है।

विद्वानों एवं साधुजन को स्त्री के प्रपंच में नहीं फंसना चाहिए, क्योंकि अधिकांश घटनाएं स्त्री के कारण ही हुई हैं।

समर्पित स्त्री पति के लिए सुबह के समय माता, दोपहर में बहन और रात्रि में वेश्या के समान व्यवहार करती है।

जो स्त्री पवित्र है, प्रेमी है, सत्यवती है, सुंदर और चतुर है, वह स्त्रौ निश्चित ही वरणीय है। ऐसी स्त्री पाने वाला सचमुच ही परम सौभाग्यशाली हैं।

आघ, पानी, मूर्ख, सांप और राजा इनसे निकटता काफी जोखिम भरा होती है। थोड़ी-सी भी लापरवाही बरतने से ये लोग मारक सिद्ध हो सकते हैं, अतः हमेशा सतर्कता बरतनी आवश्यक है।

कांच का मुकुट बनाकर पहन लिया जाए और मणि को पैरों में लटका लिया जाये तो भी बाजार में मणि का मूल्य मिलेगा, कांच को कोई पूछेगा तक नहीं। अर्थात् वास्तविकता को छुपाया नहीं जा सकता, वह सार्वजनिक होती ही है। दूसरे शब्दों में ज्ञानी पुरुष को चाहे किसी भी पद पर पदासीन कर दिया जाए, उसके ज्ञान में कम नहीं हो सकती। इसी प्रकार मूर्ख व्यक्ति उचे से उचे पद पर बैठकर भी पण्डित नहीं हो सकता।

Acharya Chanakya Inspirational Quotes in Hindi – चाणक्य के प्रेरणादायक विचार हिंदी में

 

कुशल सेनापति के अभाव में चतुरंगिणी सेना भी नष्ट हो सकती है।

मनुष्य स्वर्ग का आकांक्षी है, देवता मुक्ति चाहते हैं, निर्धन धन की कामना करता है और पशु वाणी की। ये चार अभिलाषाएं चिर सत्य हैं।

चाणक्य के मोटिवेशनल विचार हिंदी में – Chanakya Quotes in Hindi, thoughts

Acharya Chanakya Inspirational Quotes in Hindi – चाणक्य के प्रेरणादायक विचार हिंदी में
Acharya Chanakya Inspirational Quotes in Hindi – चाणक्य के प्रेरणादायक विचार हिंदी में

संतानहीन राजा, अज्ञानी मंत्र साधक और बिना दान का यज्ञ, यह चारों मनुष्य को नष्ट कर सकते हैं।

मूर्ख पुत्र, ऋण लेने वाला पिता, सुंदर पत्नी और व्यभिचारिणी माता के समान दूसरा शत्रु कोई नहीं। इन चारों शत्रुओं के होते मनुष्य घोर कष्ट में घिर जाता है।

यदि कोई यह समझता है कि उसके कारण अनेक लोगों को रोजगार मिल रहा है, उनको खाने को मिल रहा है तो यह केवल उसका भ्रम है। सृष्टि पालक परमेश्वर है, तभी तो बच्चे के जन्म होते ही मां के स्तनों से स्वतः ही दुध निकलने लगता है।

धन के कमी के कारण किसी को गरीब नहीं कहा जा सकता। धन तो कभी भी कमाया किया जा सकता है परन्तु बेवकुफ विद्याहीन धनवान होने पर भी दीन का दीन ही बना रहता है। समाज में उसे पर्याप्त सम्मान नहीं मिलता।

जो माता-पिता अपनी संतानों को उचित शिक्षा नहीं दिलवाते, वे उनके शत्रु हैं।

समय का चक्र किसी के रोके नहीं रुकता, चलता रहता है। अतः समय को पहचान कर तदानुसार कर्म करना चाहिए।

गाय चाहे जो खा ले, दूध ही देगी। इसी प्रकार विद्वान कैसा भी आचरण करे, वह निश्चित ही अनुकरणीय होगा, परन्तु यह तथ्य केवल समझदार ही समझ सकते हैं। एक-एक शब्द ही एक दिन फिर विशाल समुद्र का रूप धारण क लेता है।

हमेशा हमें कुछ न कुछ नया सिखते रहना चाहिए, फिर चाहे वह एक दोहा या उसकी एक पंक्ति या उसका एक शब्द ही क्यों न हो।

कन्यादान एक बार होता है, राजाज्ञा एक बार होती है, विद्वान एक ही बार बोलता है। ये कुछ बातें केवल एक बार होती हैं। इनकी पुनरावृत्ति संभव नहीं।

जीवन का दूसरा नाम मृत्यु है। मानव शरीर अनित्य-नाशवान है। धन-दौलत, रूप-यौवन सदा नहीं रहते। मौत हर पल हमारे सिर पर मंडराती रहती है। अतः हमें सदैव स्व धर्म का पालन करना चाहिए। इसी में हमारा कल्याण निहित है।

तांबे का पात्र अम्ल से, कांस्य का बर्तन भस्म (राख) से और नदी बहने से शुद्ध होती है।

शिक्षा, जहां से मिले, ग्रहण कर लेनी चाहिए। राजपुत्रों से नम्रता एव विनयशीलता, विद्वानों से उत्तम-प्रिय वचन बोलने की कला ग्रहण करनी चाहिए। वहीं जुआरियों से मिथ्या-भाषण और स्त्रियों से छल-कपट करने की कला सीखनी चाहिए।

सिंह से हमें यह सीखना चाहिए कि काम छोटा हो अथवा बड़ा पूरी शक्ति से करें। जिस प्रकार सिंह शिकार छोटा हो अथवा बड़ा वह अपनी पूरी शक्ति से झपटता है।

साधु उदरपूर्ति होने पर, सज्जन पराई सम्पत्ति पर, मोर बादल गरजने पर प्रसन्न होते हैं, लेकिन दुर्जन दूसरों पर विपत्ति पड़ने पर प्रसन्न होते हैं। इनसे सावधान रहना चाहिए।

दौड़-भाग, कठोर परिश्रम अथवा पैसे के पीछे दौड़ने से संतोष-शांति नहीं मिल सकती, शांति मिल सकती है संतुष्ट होने की प्रवृति से। नीम की जड़ में मीठा दूध डालने से नीम मीठा नहीं हो सकता, उसी प्रकार कितना भी समझाओ, दुर्जन व्यक्ति साधु नहीं बन सकता। ब्राह्मण, गुरू, अग्नि, कुंवारी कन्या, बालक और वृद्धों को पैरों से नहीं छूना चाहिए। ये सभी आदरणीय संबंध हैं। हमें इन्हें आदर-सम्मान देना चाहिए।

विद्या निरंतरता से सदैव बनी रहती है। आलस्य से विद्या खोने लगती है।

बहुत अधिक पक जाने पर भी इन्द्रायण के फल में मिठास नहीं आती। वह कड़वा ही बना रहता है। इसी प्रकार वृद्धावस्था आ जाने पर भी दुर्जन अपनी दुष्टता नहीं त्यागते। वे सदा दुष्ट बने रहते हैं। अर्थात् प्रौढ़ता व्यक्ति की श्रेष्ठता की परिचायक कभी नहीं हो सकती। व्यक्ति को उसके गुण-दोषों के आधार पर ही परखना चाहिए। स्पष्ट है, के अन्त है वह आयु (बुढ़ापे) में भी दुष्ट ही रहता है। जिस प्रकार पूर्ण पका हुआ भी अनार अत्यन्त मीठा नहीं होता।

यदि अपना धन दूसरे के पास है तो अपना होने पर भी वह जरूरत के वक्त काम नहीं आता।

अधिक पैदल चलने से व्यक्ति बुढ़िया जाता है, अश्व को बांधकर रखा जाए तो वह बुढ़िया जाते हैं और धूप में पड़े-पड़े कपड़े जर्जर हो जाते हैं।

बिना मंत्री का राजा, नदी किनारे के वृक्ष और दूसरे के घर जाकर रहने वाली स्त्री- ये सभी शीघ्र नष्ट हो जाते हैं, अर्थात बिना मंत्री का राजा कूटनीति के अभाव में राजपाट से हाथ धो बैठता है। नदी के किनारे स्थित विशाल वृक्ष भी जल प्रभाव से कभी भी बह सकते हैं और दूसरे की पत्नी बन जाने पर स्त्री कभी भी ठुकराई जा सकती है।

Chanakya Niti Quotes for Success in Life (Chanakya Quotes in Hindi)

Chanakya Niti Quotes for Success in Life (Chanakya Quotes in Hindi)
Chanakya Niti Quotes for Success in Life (Chanakya Quotes in Hindi)

जो व्यक्ति सभी प्राणियों को प्रति समान भाव रखता है, दूसरों के धन को मिट्टी के समान समझता है और पर स्त्री को माता। वही सच्चा विद्वान और सत्पुरुष है।

शास्त्रों में पांच माताओं का वर्णन है- राजा की माता, गुरूमाता, मित्र की पत्नी, पत्नी की माता तथा स्वयं की माता। इन सभी का समान रूप से आदर अनिवार्य है। इन पर कुदृष्टि रखने वाला महाचाण्डाल होता है।

कई तरह की नेत्रहीनता (अंधापन) होती है। कुछ जन्म से अंधे होते हैं। कुछ आंख होते हुए भी अंधे। कामवासना में हुए अंधे को कुछ नहीं सूझता, मदांध को भी कुछ दिखाई नहीं पड़ता। लोभी भी लोभ के वशीभूत नेत्रहीन हो जाता है। इस तरह के लोग आंख वाले अंधे कहलाते हैं।

आमदनी से अधिक खर्च करने वाला, दूसरों से व्यर्थ ही झगड़ने वाला और हर प्रकार की स्त्री (बच्ची, युवती, वृद्ध, बीमार, सुन्दर, कुरूप …) से संभोग करने वाला पुरुष शीघ्र ही नष्ट हो जाता है।

विदेश में शिक्षा मित्र के समान है, दवाई रोगियों की मित्र है, घर में पत्नी मित्र होती और धर्म मृत व्यक्ति का मित्र होता है।

प्रेम की सिख लेनी है तो भंवरे से लो। कठोर लकड़ी को छेद देने वाला भंवरा कोमल से कमल में स्वयं को बंद कर लेता है तो सिर्फ इसलिए कि उसे कमल से प्रेम होता है। यदि वह कमल को छेद कर उससे बाहर आ जाए तो कमल के प्रति उसका प्रेम रहा ही कहां?

ज्ञान से बढ़कर दूसरा कोई प्रकाश नहीं, वासना के समान दूसरी कोई व्याधि नहीं, क्रोध से बढ़कर दुसरी कोई अग्नि नहीं और अज्ञानता से बढ़कर दुसरा कोई शत्रु नहीं।

मूर्ख को उपदेश दुश्मन के समान लगता है। लोभी अथवा कंजूस को याचक (भिखारी) दुश्मन के समान लगता है।

व्यभिचारिणी स्त्री को उसका पति दुश्मन के समान लगता है। और चोरों को चंद्रमा दुश्मन के समान लगता है।

ज्ञान प्राप्त करने, तप करने और दान करने में कभी संतुष्ट नहीं होना चाहिए। इन्हें निरंतर बढ़ाते रहना चाहिए।

दुर्जन को साहस से, बलवान को नम्रता से और समान शक्तिशाली को अपनी शक्ति से वश में करना चाहिए।

मेहमान का आदर-सत्कार न करने वाला, थके-हारे को मदद न देने वाला और दूसरे का हिस्सा हड़पने वाला, ये सब लोग महादुराचारी होते हैं।

अप्रिय बोलना, दुष्टों की संगति, क्रोध करना, स्वजन से बैर ये सब नरकवासियों के लक्षण हैं।

यदि शेर की माद में जाकर देखा जाए तो हो सकता है कीमती ‘गजमुक्ता’ मणि मिल जाए, लेकिन सियार की गुफा में बछड़े की पूंछ और गधे के चमड़े के अतिरिक्त कुछ नहीं मिल सकता। अर्थात् ज्ञानी पुरुषों के साथ से ज्ञान की कोई न कोई बात सीखने को जरूर मिलेगी, किन्तु मूर्ख से कुछ भी नहीं मिल सकता।

प्रजा के पाप का फल राजा, राजा के पाप का फल राजपुरोहित, शिष्य के पाप का फल गुरू और स्त्री के पाप का फल पति को भोगना पड़ता।

हाथी/गजराज को अंकुश से, सींग वाले जानवरों को लाठी से, अश्व को चाबुक से और दुर्जन को तलवार दिखाकर वश में करना चाहिए।

दिन में दिप जलाना, समुद्र में बरसात होना, भरे पेट व्यक्ति को भोजन कराना और दौलतमंद को दान देना व्यर्थ है।
पत्नी, संतान और साधुजन की संगति में हीन, दीन और दुःखीजन को थोड़ा आराम मिल सकता है, लेकिन ये अंतिम पड़ाव नहीं है- निर्लिप्त जीवन यापन से ही हर तरह के कष्टों से मुक्ति संभव है।

चाणक्य स्टेटस और अनमोल वचन Chanakya Quotes in Hindi status

चाणक्य स्टेटस और अनमोल वचन Chanakya Quotes in Hindi status
चाणक्य स्टेटस और अनमोल वचन Chanakya Quotes in Hindi status

पति की इच्छा के विपरित पत्नी को कोई कार्य नहीं करना चाहिए। यहां तक की पति कीइच्छा के विपरित उपवास भी नहीं करने चाहिए, क्योंकि इस तरह पति की उम्र कम होती है और पत्नी को घोर पाप की भागी बनती है।

ब्राह्मण, राजा और संन्यासी सदैव भ्रमणशील होने चाहिएं, इससे उनका मान और गौरव बढ़ता है।

बुरे मित्र का न होना ही अच्छा, बुरे राजा से बिना राजा होना अच्छा, सदाचरण से रहित शिष्य से शिष्य का न होना अच्छा और आचरणहीन स्त्री से बिना स्त्री के रहना ही उचित कहा गया है।

स्त्री सब कुछ कर सकती है, कवि सब-कुछ देख सकता है, शराबी सब कुछ कर सकता है, कौआ सब कुछ खा सकता है। मनुष्य का स्वभाव ही उसे उच्च व निम्न बनाता है।

समझदार वही है जो फूंक-फूंक कर कदम रखे, पानी को छान कर पिये, शास्त्रानुसार वाक्य बोले और सोच-विचारकर कर्म करे। इस तरह किये गये कार्य में सफलता अवश्य मिलती है।

विद्वान को सत्य बोलकर, लोभी-लालची को धन देकर, अहंकारी को हाथ जोड़कर और मूर्ख को मनमानी से न रोककर वश में किया जा सकता है। ऐसे व्यवहार में इनसे मनचाहा कार्य साधा जा सकता है।

होनी को नहीं टाला जा सकता। होनी होकर रहती है। होनी के वक्त वैसा ही अनुकूल वातावरण बन जाता है, हमारी बुद्धि भी तद्नुकूल ही कार्य करने लगती है।

बगुले से एकाग्राचित्त होने की शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए। बगुला अपनी समस्त क्रियाओं को त्यागकर एकाग्रचित्त हो, अपने शिकार का ध्यान करता है और मुनिजन को बगुले की तरह का श्रेष्ठ आसन अपनाना चाहिए।

पक्षियों में कौआ तथा पशुओं में गीदड़ को धूर्त माना गया है। हमें इनसे बचना चाहिए। ये अनावश्यक ही किसी का कार्य बिगाड़ने में रुचि लेते हैं।

भावनाएं आदमी को आदमी से जोड़ती हैं। दूर रहने वाला भी यदि हमारा प्रिय है तो वह हमेशा दिल के पास रहता है जबकि पड़ोस में रहने वाला भी हमारे दिल से कोसों दूर ही रहता है क्योंकि उसके लिए हमारे दिल में कोई जगह नहीं होती।

क्रोध यमराज के समान है, वह सब कुछ नष्ट कर डालता है। संतोष नंदन वन की तरह सुख-वैभव प्रदान करता है। विद्या कामधेनु के समान है और तृष्णा वैतरणी के समान कष्टकर है। हमें इन बातों को व्यवहार में ला तदानुसार ही कार्य करना चाहिए।

बिना गुरू के केवल पुस्तकों से ही ज्ञान प्राप्त करने वाले को चाणक्य ने अवैध गर्भधारण करने वाली स्त्री के समान कहा है। जिस प्रकार अवैध संतान को समाज में उचित स्थान नहीं मिलता, उसी प्रकार बिना गुरू के प्राप्त ज्ञान को सम्मान नहीं मिलता, उसका कोई आधार नहीं होता।

कर्म, विद्या, संपत्ति, आयु और मृत्यु मनुष्य को ये पांचों चीजें गर्भधारण के वक्त ही मिल जाती हैं।

एक गुण सैकड़ों अवगुणों को छिपा लेता है। जिस प्रकार केतकी (केवड़ा) में कांटे होते हैं, कीचड़ में उत्पन्न होती है, फिर भी अपनी सुगंध से सबको अपनी ओर आकृर्षित करती है। गुलाब में भी कांटे होते हैं, लेकिन उसकी मधुर सुगंध उसके इस दोष को ढक लेती है।

अपने रहस्य हर किसी पर उजागर नहीं करने चाहिएं, कुछ रहस्य तो ऐसे कहे गए हैं, जिन्हें अपनी पत्नी से भी छिपाना आवश्यक है। अत: यहां सावधानी बरतनी आवश्यक है।

Chanakya Niti Quotes for Success in Life

Chanakya Niti Quotes for Success in Life
Chanakya Niti Quotes for Success in Life

अपमान, कर्ज का बोझ, दुष्टों की सेवा-अनुचरी, दरिद्रता, पत्नी की मृत्यु आदि बिना ताप के ही शरीर को जलाए जाते हैं।
सीधेपन का लोग लाभ उठाते ही हैं। मनुष्य को इतना ज्यादा भी सरल-हृदयी नहीं होना चाहिए कि हर कोई उसे ठग ले। जंगल में सीधे खड़े वृक्षों को ही काटा जाता है। टेढ़े-मेढ़े वृक्ष मजे से सीना ताने खड़े रहते हैं।

सुख सदैव किसी को नहीं मिलता, ऐसा भी कोई प्राणी नहीं, जो कभी बीमार न होता हो, कोई कुल निष्कलंक नहीं होता, कोई न कोई दोष निकल ही आता है। अतः हमें परिस्थिति के अनुकूल ही आचरण करना चाहिए।

गधा बहुत संतोषी जीव है। थकने पर भी वह भार ढोता रहता है, सर्दी-गर्मी-वर्षा की उसे परवाह नहीं रहती, जो मिल जाए उसे खाकर संतोष से गुजर करता है।

शास्त्रों में पांच पिता बताए गए हैं : जन्म देने वाला- जनक, विद्या देने वाला-गुरु, भय से बचाने वाला, यज्ञोपवीत कराने वाला तथा अन्न देने वाला-अन्नदाता। इन सभी को पिता-तुल्य समझ आदर-सम्मान करना चाहिए।

आदमी पर जब विपत्ति पड़ती है तो वह अपना चोला बदल लेता है। शक्तिहीन होने पर व्यक्ति साधु बन जाता है।

धनहीन होने पर ब्रह्मचारी, अस्वस्थता में ईश्वर भजन याद आता है। ये सब ढोंग हैं। शक्तिशाली साधु नहीं बनता, धनवान ब्रह्मचारी नहीं बनता, स्वस्थ होने पर व्यक्ति अपने ही राग-रंगों में खोया रहता है, उसे ईश-स्तुति का होश ही नहीं रहता और यौवन से सम्पन्न नारी मन, वचन और कर्म से पतिभक्त नहीं हो सकती। शरीर की सुंदरता के मोह में पड़कर व्यक्ति पथ-भ्रष्ट हो जाता है। चाणक्य ने कहा है, शरीर और चेहरे की सुंदरता का आकर्षण व्यर्थ है।

हर स्त्री का सुख एक समान है, अतः व्यर्थ ही मृग मरीचिका में पड़ना अनुचित है। अन्न से बढ़कर कोई दान नहीं होता। द्वादशी की तिथि सर्वोपरि है। गायत्री मंत्र सर्वश्रेष्ठ है और माता से श्रेष्ठ कोई नहीं। जो मनुष्य न तो विद्वान है, न दानी, न साधक, जिसमें शीलता का सर्वथा लोप है, गुणहीन है, अधर्मी है- ऐसा मनुष्य पशु-तुल्य है। ऐसे मनुष्यों को पृथ्वी पर भार की तरह समझना चाहिए।

संतोषी राजा, असंतोषी ब्राह्मण, लज्जावती वेश्या और लज्जाहीन पत्नी ये जीवन में कभी सुख-शांति और संपन्नता नहीं पा सकते। संतोषी राजा संतुष्टि के कारण राज्य का विकास नहीं कर पाता है। असंतोषी ब्राह्मण और अधिक की चाह में लालची हो अनाचरण में उतर आता है। वेश्या अगर लज्जाशील हो तो उसका कामकाज बाधित होगा और लज्जाहीन पत्नी जग-हँसाई का कारण बनती है।

मोह-माया से रिक्त मनुष्य के सच्चे सहचरों के बारे में वर्णन करते हुए चाणक्य कहते हैं कि संसार का परित्याग करने के पश्चात् मनुष्य अकेला नहीं रहता, अपितु सत्य ज्ञान के समान, ज्ञान पिता के समान, धर्म भाई के समान, दया बहन के समान, शान्ति पत्नी के समान और क्षमा पुत्र के समान निरंतर उसके साथ रहते हैं। इस प्रकार ये सब ही उसके हितैषी, बन्धु-बान्धव होते।

इंसान अकेला जन्म लेता है, अकेला दुःख सहता है, अकेला ही स्वर्ग या नरक अधिकारी होता है। अतः रिश्ते-नाते तो पल भर के हैं, हमें अकेले ही जगत के रंगमंच पर नाटक करना पड़ता है।

विद्वान सर्वत्र सम्माननीय होता है। अपने उच्च गुणों के कारण देश-विदेश सभी जगह वह पूजनीय होता है अर्थात् विद्या ही सर्वोच्च धन है। विद्या के कारण ही खाली हाथ होने पर भी विदेश में धर्नाजन किया जा सकता है तथा मान-सम्मान बढ़ाया जा सकता है। विद्या के अभाव में उच्च कुल में जन्मा व्यक्ति भी सम्मान नहीं पाता।

सुपात्र को दिए गए दान का फल अनन्त काल तक मिलता रहता है। भूखे को दिये गये भोजन का यश कभी खत्म नहीं होता। दान धर्म का सबसे महान कार्य हैं।

पराई स्त्री के साथ व्यभिचार करने वाला, गुरू और देवता का धन हरण करने वाला और हर तरह के प्राणियों के बीच रहने वाला यदि ब्राह्मण भी है तो वह चाण्डाल है।

बिना सच्चाई के सारा जगत व्यर्थ है। संसार में सब कुछ सच पर निर्भर है। सच के तेज से सूरज तपता है, सच से पृथ्वी टिकी है, सच के प्रभाव से ही पवन बहती है। सच ही जीवन की पहचान है।

बुद्धिमान वही है जो अपनी कमियों को किसी पर उजागर न करे। घर की गुप्त बातें, धन का विनाश, निच लोगों द्वारा धोखा, अपमान, मन की वेदना इन बातों को अपने तक ही रखना चाहिए।

इतिहास गवाह है महान वही बन पाया है जिसमें अपनी कठिनाइयों को आगे बढ़ने का अवसर बना दिया हो जिसने अपनी कमियों को निर्बलता नहीं अपनी ताकत बना दिया हो।

क्रोध के उन्माद में नहीं होता है समस्या का निदान किंतु शांत चित्त रह कर हर समस्या का हल ढूंढा जा सकता है।

कोई भी निहित जनहित समस्या मानवीय क्षमता से बड़ी नहीं होती अधिकतर लोग केवल कठिनाइयों देखते हैं तो कुछ कठिनाइयों के बीच रहकर अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की क्षमता रखते है।

इतिहास में केवल वह इंसान ही अपना नाम लिखा पाता है जो विपरीत परिस्थितियों में रहकर भी अपने उद्देश्य को नजर में रखकर दैनिक समस्याओं में बिना उलझे उद्देश्य प्राप्त की राह में आने वाली मुश्किलों को समूल खत्म कर देते है।

असंभव दिखने वाला निर्णय होता क्या है एक कठिन निर्णय जो लिया जा सकता है इसीलिए चाहे जितना असंभव लगे निर्णय लो क्योंकि समस्या को अनिर्णय से खींचोगे तो समस्या तुम्हें खा जाएगी। निर्णय लेने में साहस करो और फिर देखो इतिहास तुम्हारा नाम कैसे अमर कर देता है।

आचार्य चाणक्य ने सुखी गृहस्थ की पहचान बताते हुए कहा है कि जिस स्थान पर सदैव खुशियां बरसती हों, सन्तान सुशिक्षित, पत्नी मृदुभाषिणी, पर्याप्त धन, स्वामिभक्त सेवक, अतिथि-सत्कार और नित्य ईश-वन्दना होती हो; जहां संत-महापुरुषों का आवागमन और सत्कार हो, ऐसा घर वास्तव में स्वर्ग- -तुल्य होता है, जहां रहने वाले गृहस्थ निश्चित ही सौभाग्यशाली होंगे।

जो यजमान, दु:ख और कष्टों से ग्रस्त ब्राह्मणों को यथाशक्ति दान-दक्षिणा देकर संतुष्ट करता है, यह स्मरण रखना चाहिए वह दान व्यर्थ नहीं जाता अपितु अनन्त गुना होकर वापस मिलता है। अस्तु, दान भी व्यर्थ नहीं जाता वरन् धन आने के नये-नये मार्ग प्रशस्त करता है।

Chanakya Quotes in Hindi (Chanakya Thoughts in Hindi)

Chanakya Quotes in Hindi (Chanakya Thoughts in Hindi)
Chanakya Quotes in Hindi (Chanakya Thoughts in Hindi)

व्यक्ति को सुखी रहने के लिए आवश्यक है कि वह लोक-व्यवहार में निपुण हो। जो व्यक्ति सेवकों के प्रति उदारता, बन्धु-बान्धवों के प्रति प्रेम-व्यवहार, दुष्टों के प्रति कठोरता बरतते हैं, जो सज्जन-विद्वानों के प्रति अनुराग और नम्रता रखते हों, शत्रुओं के समक्ष साहस, गुरुजन के प्रति धीरता और स्त्रियों के समक्ष वाक-चातुर्य रखते हों, ऐसे भद्र पुरुषों के महत्ती कार्यों पर ही पृथ्वी टिकी हुई है।

जिन लोगों ने कभी दान न किया हो, वेदों का श्रवण न किया हो, संत-सज्जनों का दर्शन-लाभ न प्राप्त किया हो, अपने पांवों से तीर्थ-यात्रा न की हो, जिनके पेट में पाप की कमाई का अन्न जाता हो, अभिमान से भरे जो अकड़कर चलते हों, ऐसे लोगों का जीवन व्यर्थ है। ऐसे नीच और अति स्वार्थी जीवन को तुम जितनी जल्दी हो सके, छोड़ दो। अर्थात् ऐसे निरर्थक जीवन से तो मृत्यु अच्छी।

यदि बसंत रितु में भी करील के पौधे में पत्ते नहीं आते तो बसंत का क्या दोष। यदि उल्लू को दिन में दिखाई नहीं दे तो इसमें सूरज का क्या दोष है। यदि वर्षा की बूंदें चातक के मुंह में न गिरे तो इसमें बादलों का क्या दोष। विधाता ने जिसके भाग्य में जो लिखा है, उसे दुनिया की कोई ताकत नहीं मिटा सकती।

एक सरल सिद्धांत है समस्या तुम्हारा अंत करें इससे पहले तुम समस्या का अंत दो, जड़ से खत्म दो ताकि वो अपना सिर ही ना उठा सकें।

 

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